मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

विजयदशमी पर्व पर: सीमा पर रावण खड़ा [ कुण्डलिया ]




गीता   का   अमृत    वचन ,
सदा   सत्य     की    जीत।
सत  से      ही    संसार  है,
सत    ही     मानव -  मीत।
सत    ही    मानव   -  मीत,
असत  की   सदा  पराजय।
पाप    तमस      का   रूप,
पुण्य की होती   जय -जय।।
अशुभ     गया     है    हार,
'शुभम'   सत - अमृत पीता।
दिया      कृष्ण      उपदेश,
कह   रही   भारत -गीता।।1।

पर्व      दशहरा    आ   गया ,
हरो     काम,   मद,    क्रोध।
लोभ , मोह ,मत्सर  , अहम,
आलस ,     हिंसा,      बोध।।
आलस,       हिंसा ,     बोध,
नहीं     करनी      है    चोरी।
अपनी        पत्नी       छोड़ ,
नारि    सब    माता   तोरी।।
बहनों    का    शुभ     भाव ,
हृदय   में     रखना    गहरा।
पुतले    ही      मत    जला,
'शुभम' तब   पर्व दशहरा।।2।

लीला     करते    राम   की,
राम     हुए     बस     एक।
क्या    सीखा    है  राम  से,
रावण       बसे     अनेक।।
रावण       बसे       अनेक ,
मात्र       संवाद       बोलते।
आते       बीच        समाज,
ज़हर  ही   सदा      घोलते।।
राम -  लखन    बन   हीन-
रहे , क्या   काला  - पीला ?
'शुभम'     पीटना      लीक ,
सबक लो   करके  लीला।।3।

रावण    के    पुतले    जला,
आतिशबाजी             फूँक।
बढ़ा     प्रदूषण      देश   में ,
कैसी        तेरी         हूक ??
कैसी        तेरी          हूक,
पटाखे   जला -  जला  कर ।
काटे          अपने        पैर ,
कुल्हाड़ी  चला - चला  कर।।
काले          कर्कट       रोग ,
भयंकर    हो      जाते  व्रण।
मन     का    कचरा    फूँक,
जलाता   पुतला  रावण !!4।

सीमा   पर     रावण   खड़ा,
पहले       उसको        देख।
रक्षा   कर     ले   देश    की,
मिटा     शत्रु     की     रेख।।
मिटा     शत्रु      की     रेख ,
'शुभम'     होगी     दीवाली।
चीनी    में    विष        घोल ,
पड़ौसी     देता       ताली।।
टेढ़ी       करता        आँख,
बना  दे     उसका    कीमा।
पुतलों   को    मत     पोत,
सुरक्षित  कर ले  सीमा ।।5।

💐शुभमस्तु !!
✍रचयिता  ©
🚩 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

www.hinddhanush.blogspot.in

08.10.2019
विजयदशमी  सम्वत :2076 विक्रमी.
10.50 पूर्वाह्न।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...