गाँधीजी : तब और अब
[ लेख ]
वे करके दिखाते थे। ये दिखाकर करते हैं। गाँधीजी और उनके सच्चे अनुयायियों
की यही वास्तविकता थी।
आज समय बदल गया है। बहुत बड़ा अंतर आ गया है,
तब में और अब में।
गांधी जी एक व्यवहारिक और आदर्श इंसान थे। असम्भव को भी सम्भव कर दिखा पाने की सशक्त सामर्थ्य से युक्त।उनके जीवन में एक ऐसी आदर्श - व्यवहारिकता के दर्शन होते हैं , जो आज के राजनेताओं
में दुर्लभ तो क्या असम्भव हैं।
जीवन का कोई भी क्षेत्र रहा हो: व्यक्ति , परिवार , समाज, शिक्षा , धर्म , देश , देश की आज़ादी की माँग :सब कुछ
एक आदर्श -व्यवहारिकता से
ओतप्रोत है। कहीं भी कोई
दिखावट , बनावट , नकली
बुनावट दिखाई ही नहीं देती।गांधी जी या श्री लाल बहादुर शास्त्री के व्यक्तित्व और कृतित्व से यदि आज के राजनेताओं की तुलना की जाए ,तो अभी तक एक भी ऐसा राजनेता नहीं पैदा हुआ , जिसे करनी से अधिक कथनी में विश्वास अधिक न हो। आज देश का अरबों- खरबों रुपया इनकी राजनीति की बनावटी चमक दिखाने और जनता में अपनी छवि को बेहतर से बेहतर दिखाने में व्यय हो जाता है। यदि सूरज में तेज है , ऊष्मा है , प्रकाश है तो उसे टी वी चैनलों या अखबारों के मुँह से कहलवाने की क्या आवश्यकता है ? वह तो स्वतः दिखाई देगा। लेकिन नहीं , सारे मीडिया को केवल इनके राजनीतिक एजेंडे को प्रचारित करने से क्या देश की वास्तविक छवि में कुछ विस्तार हो सकेगा , यह समझ से नितांत परे है।
आँकड़ेबाजियों से जनता को मूर्ख बनाने की कला बनकर रह गई है ,आज की राजनीति। औऱ उनके सक्रिय क़िरदार कौन हैं ? पिछलग्गू नेतागण, चापलूस चमचे और अंधभक्त। इससे वे दुनिया को क्या संन्देश देना चाहते हैं ?
स्वच्छता से अधिक स्वच्छता का प्रचार किया जाता है । किया जा रहा है। स्वच्छता का नारा लेकर उसे हाइलाइट करना : गांधी जी के उन्हीं सिद्धान्तों की यह खुलेआम चोरी है। यह ठीक वैसे ही है , जैसे किसी औऱ निर्माता के निर्माण पर अपना लेबिल ठोक देना। वर्तमान युग में लेबिल चस्पा करने की सियासत का ही बोलबाला है। जो सचाई, आदर्श और यथार्थ से कोसों दूर है। गढ़े हुए मुर्दे खोदकर उनके ऊपर अपने संगमरमरी ताजमहल खड़े किए जा रहे हैं। जिनमें न कहीं गांधी जी , शास्त्री जी हैं और न कहीं गांधीवाद।
इस देश की अशिक्षित जनता तो अज्ञान है ही , किन्तु विडम्बना की बात तो यह है कि जो अपने को शिक्षित और बुद्धिजीवी मानते हैं, वे उससे भी अधिक अंधभक्त हैं और अंधे की लाठी थामकर पीछे -पीछे चल पड़े हैं। आज देश में उत्तर प्रदेश शैक्षिक स्तर पर सबसे फिसड्डी है। केरल का पहला स्थान है। यह कोई नई बात नहीं है। इससे यहाँ की सियासत का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश के शैक्षिक पतन के लिए यहाँ की राजनीति, राजनेता , पिछलग्गू शिक्षाविद, औऱ अभिभावकों की निकम्मी मानसिकता जिम्मेदार है। यहाँ योग्यता का महत्व नहीं , केवल अंकों का महत्व है , भले ही वे नकल करके प्राप्त किये गए हों। निजी कॉलेजों में बढ़ती हुई छात्र संख्या तथा राजकीय औऱ अनुदानित कालेजों में ह्रास इस बात का प्रमाण है कि यहाँ योग्यता का जनाजा निकाल दिया गया है। न अभिभावक चाहता है कि उनका बच्चा संस्था में जाये और न बच्चा जाना चाहता है। शिक्षक भी नहीं चाहते कि उन्हें कक्षा लेनी पड़े। इसलिए वे उन्हें न आने के लिए ही प्रोत्साहित करते हुए देखे जाते हैं। क्या यही है गांधी जी के बाद का भारत? शायद उनकी आत्मा स्वर्ग में बैठकर रोती होगी ? यदि आज यहाँ गाँधी जी भी आ जायें तो वे भी हार मान बैठेंगे।
प्रदर्शन और प्रचार पर टिकी राजनीति देश के लिए आत्मघाती सिद्ध होगी। होती रहे , उन्हें क्या? उनका उद्देश्य पूरा हो रहा है। जातिवाद , वंशवाद और क्षेत्रवाद की राजनीति का गांधी शास्त्री जी से कोई लेना देना नहीं है। हाँ, उनको भुनाकर उनके बैनर तले अपने उल्लू सिद्ध जरूर किए जा रहे हैं। एक प्रकार की तानाशाही थोप दी जा रही है। अपने को स्वयम्भू भगवान सिद्ध करने की कला में सिद्धहस्त राजनेता हर युग में मौज करते रहे हैं। आज स्थिति कुछ ज्यादा ही भयानक है। रिश्वत , भ्रष्टाचार, निरन्तर बढ़ रहा है। फिर कैसी प्रगति? सब बनावटी औऱ नकली आँकड़े के जाल में फंसा हुआ आम मध्यम वर्ग निरंतर पिस रहा है। चूसा जा रहा है। टेक्स दर टेक्स की मार उसका कचूमर निकाले दे रही है। मगर फिर भी वह अंधा बना हुआ , स्तुति के गान गा रहा है। आज वह गांधी और गांधीवाद से हजारों कोस दूर है, जिससे निज़ात का कोई भी रास्ता नहीं है। 💐 शुभमस्तु !
✍लेखक ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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