रविवार, 6 अक्तूबर 2019

ग़ज़ल




पार     हो     गए    तो पार,
अन्यथा     डूबे    मँझधार।

हिम्मत      है     हौसला भी,
नहीं    मानी  है  मगर   हार।

खटखटाता     ही  रहूँगा मैं,
जब  तक खुलेगा नहीं द्वार।

बिना   समझे    कहता  नहीं,
हर शब्द है अनमोल उपहार।

शागिर्द  बन जाएगा   'शुभम',
खुल ही जायेगा    वह  द्वार।।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍋 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

www.hinddhanush.blogspot.in

29.09.2019◆11.30 पूर्वाह्न।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...