मंगलवार, 29 अक्तूबर 2019

ठंड सरकने लगी [ गीत ]



दीप    जलाए   गई   दिवाली।
ठंड    सरकने   लगी  निराली।।

शरद   सुहानी   ओस झर रही।
शीतलता    आगोश  भर रही।।
सुख     की    वर्षा  करने वाली।
ठंड   सरकने    लगी  निराली।।

चादर   कम्बल    हमें  सुहाते।
नहीं   पवन  के   झोंके   भाते।।
मक्खी    मच्छर  दुबके  नाली।
ठंड   सरकने   लगी  निराली।।

दिन का   मान  घट रहा    दिन - दिन।
कर  विलम्ब रवि आता छिन- छिन।।
फूल       खिले      प्रमुदित   है  माली।
ठंड       सरकने         लगी  निराली।।

जरसी      स्वेटर     करें  प्रतीक्षा।
खिली     धूप    में   लेते    दीक्षा।।
जाकिट     सदरी    कमली  काली।
ठंड     सरकने     लगी   निराली।।

धान पके  खीलों की खिल - खिल।
गेहूँ    उगते     हैं   अब  हिलमिल।।
चना       नाचता     धुन  मतवाली।
ठंड      सरकने        लगी निराली।।

सौंधी    -  सौंधी     मूँगफली     है।
गेंदे    की    महकती     कली    है।।
छायी    तुहिन - स्नात  हरियाली।
ठंड    सरकने     लगी    निराली।।

💐शुभमस्तु  !
✍रचयिता ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

www.hinddhanush.blogspot.in

29.10.2019 ★3.30 अपराह्न।

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