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✍️ लेखक ©
🏕️ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कौन कहता है कि आज का आदमी गाजर टमाटर से कम है! कदापि नहीं । बल्कि वह आलू,गोभी,गाजर,टमाटर,
मटर,पालक ,बैंगन, बथुआ से होड़ लेता हुआ उनसे बहुत आगे चला गया है। जिस प्रकार इन सभी सब्जियोंऔर
फलों(सेव,संतरा,लीची,अंगूर,
अनार,अनन्नास,आड़ू आदि) के अनेक रंग हैं , वैसे ही उसने अपने को भी अनेक रंगों में विभाजित कर लिया है। फल, फूल,सब्जियों की तरह वह बेचा और खरीदा जा रहा है।
कौन नहीं जानता कि
रंग को ही वर्ण भी कहा जाता है। विभिन्न वर्णों में बँटा हुआ आदमी अपने कद को बड़ा मानने के अहंकार में खोया हुआ ,अपने को निरंतर कमजोर और पराधीन करता चला जा रहा है।
कोई अपने को 'सवर्ण'कहकर देश और समाज में घृणा बाँट रहा है। मानव , मानव के मध्य ऊँची -ऊँची दीवारें खड़ी कर रहा है।'सवर्ण' अर्थात जिसका कोई वर्ण है, और उसी के द्वारा विभाजित किया गया :'अवर्ण' (अ=नहीं,
वर्ण =रंग) अर्थात जिसका कोई वर्ण ही नहीं ! क्या ऐसा भी सम्भव है? कि किसी मानव का कोई वर्ण न हो!
यदि वर्ण है तो अपना उज्ज्वल, केसरिया, लाल आदि और अवर्ण का काला ,स्याह, धूसर ,अशुद्ध और अपवित्र ।
मानव का पतन और विकास :दोनों ही उसके अपने हाथ में हैं। विडम्बना ही यह है कि वह जिसे विकास कहता है ,वही उसके विनाश का बीज है ।यही कारण है कि अनेक मत ,मतांतर ,मजहब और धर्म उठ खड़े हुए हैं। सब अपने -अपने अभिजातत्व का झंडा ऊँचा कर रहे हैं।अनेक जातियाँ, उप जातियाँ,गोत्र,उपगोत्र आदि में विभाजित मानव
कोई गाय ,भैंस ,भेड़ बकरी थोड़े ही है, वह सबसे बुद्धिमान धरणीधर है। उसके अनेक रंग के झंडे (:लाल ,हरा, केसरिया, सफेद ,नीला , बहुरंगी :)देखे जा सकते हैं। मानव ही मानव को बाँट ,काट औऱ छाँट रहा है।गाजर -मूली की तरह खुद बखुद कट रहा है। यह मानवीय अति बुद्धिमता का परिणाम है। जैसे --जैसे वह अपने को तथाकथित विकास के पहाड़ पर चढ़ता हुआ दिखाता है, उतना ही गहरे पाताल की ओर गिरने का अनायास उपक्रम कर लेता है।
आज का अति विकसित ,अति बुद्धिमान मानव, मानव की घृणा की सर्वोच्च चोटी पर आसीन है। उसे मानव की देह से बदबू आती है।लेकिन जब मृत्यु की शैया पर पड़ा हुआ अंतिम साँस ले रहा होता है ,तो उसीके संबंधी उसी बदबूदार आदमी के खून को सिरिंज से चढ़वाकर उसकी प्राण रक्षा भी करते हैं। वहाँ वह अपने वर्ण को भी भूल जाता है। उसका मानसिक ऊँच -नीच न जाने किस आदर्श की बलि चढ़ा दिया जाता है। तब उसके 'पवित्र' कमल-मुख से
एक ही सूत्र वाक्य प्रस्फुटित होता है: 'हर इंसान के खून का रंग लाल होता है,उसमें भेद भाव कैसा!' काश यह
आदर्श वाक्य जीवन- वाक्य
बन जाता! फिर मानव मानव नहीं ,देवता बन जाता ।पर क्या कीजिए उसे देवता बनना स्थायी रूप से स्वीकार नहीं है। वह अस्थाई ,तात्कालिक और स्वार्थवश देवता बन तो जाता है , पर उस उपाधि को
सिर पर रखी टोपी की तरह उतार कर फेंक देता है।
बस, ट्रेन , वायुयान ,होटल ,
रेस्टोरेंट, हॉस्पिटल, सार्वजनिक नल , भोजनालय
आदि स्थानों पर इस रंग-बिरंगे आदमी का आदर्श स्वरूप देखते ही बनता है। वहाँ नहीं पूछता कि वाहन का चालक, परिचालक, होटल का मालिक , बियरर ,डॉक्टर ,नर्स का वर्ण क्या है। जहाँ जीवन की रक्षा
में संकट उत्पन्न होने लगे, वहाँ वर्ण विवर्ण हो जाता है।सारी अस्पृश्यता न जाने कहाँ
काफूर हो जाती है। यह भी सही है कि 'भरे हुए पेट वालों को वर्ण दिखाई देता है, जब पेट खाली हो तो वर्ण की कौन पूछता है!
बात भी सही ही है। तब तो साँप और नेवले एक ही बिल में रहने को तैयार हो जाते हैं।सारे भेदभाव की दीवारें स्वतः ढह जाती हैं। एक ही थाली के चट्टे-बट्टे बन जाते हैं।जब जीवन है ,तभी तो वर्ण है ,अन्यथा कोई वर्ण ही नहीं।
जब वांछित ग्रुप का रक्त नहीं
मिलता, तो बिना सोचे -समझे जिसका भी मिलता है , ठूँस दिया जाता है।
वाह रे !अपने को बुद्धिमान कहने वाले इंसान ! अपने अस्तिव के पवित्र चरणों पर कुल्हाङी का प्रहार करने वाले मानव तू धन्य है! निश्चय ही तेरी कीमत आलू ,गोभी ,टमाटर, गाजर ,गोभी से अधिक है!
तराजू के एक पलड़े में ये औऱ दूसरे में तेरी देह, फिर भी तू भारी । क्या करें ,तेरी भी है लाचारी, तुझे जीतना है सकल जहान, बनना है गधे, घोड़ों ,भेड़-बकरियों से महान! तेरी इसीलिए तो है
ऊँची शान! बस-बस ज्यादा मत बन ! अब औऱ भी ज्यादा मत तान! क्या कहा ! सचाई सुन जानकर हो गए हैं बहरे कान! अरे नादान अब भी तो
अपने को पहचान ! देख ले , सबका एक ही हस्र होता है, जिसे तू कहता है श्मशान।
नहीं मानता तो भले ही मत मान!पर आदमी को आदमियत से पहचान!
🍒 शुभमस्तु !
२२.०१.२०२१◆७.४५पतनम मार्त्तण्डस्य।
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