शनिवार, 30 जनवरी 2021

ग़ज़ल


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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देवनागरी      साड़ी    धारी।

उर्दू की लिपि  है  सलवारी।।


ऊँचे मस्तक  की  लिपि हिंदी,

उर्दू की  भगिनी अति प्यारी।


बाएँ   से   दाएँ    गति करती,

पढ़ते   वेद  -  पुराण   मुरारी।


उर्दू    की   विपरीत  चाल  है,

फिर भी  हिंदी  की बहना री।


आँकें मत   उर्दू  को   कमतर,

उसकी भीअपनी छवि न्यारी।


बहुभाषी     है   देश    हमारा,

प्यारी   हैं    भाषाएँ      सारी।


'शुभम'रार भाषा की मत कर,

हिंदी ,उर्दू    सब    हैं   प्यारी।


🪴 शुभमस्तु !


२४.०१.२०२१◆९.३० आरोहणम मार्त्तण्डस्य।

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