शनिवार, 30 जनवरी 2021

ग़ज़ल


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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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अहंकारियों  के अगर कान होते।

सभी  चादरों को यहाँ तान सोते।।


काँटे उगाते जो औरों की ख़ातिर,

बिना एक दुम के उन्हें मान खोते।


होती  न गदही  कभी गाय माता,

कर  ले  भले  गंग  जल पान गोते।


नहीं छोड़ते हैं सहज सर्प विष को,

फन जब कुचलता मरण जान रोते।


निर्बल  नहीं  है  ये   अपना तिरंगा,

 रटते  हैं  बोली  वे  अज्ञान तोते।


जिन्हें देश प्यारा है प्राणों से ज़्यादा,

नहीं  राह   में  वे   श्मशान बोते।


'शुभम' नौंन मत दो खोतों के मूँ में ,

हल  में  भी   कोई  गदहा  न जोते।


🪴 शुभमस्तु ।


३०.०१.२०२१◆१२.००आरोहणम मार्त्तण्डस्य।

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