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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
सूरज केवल एक ही,चंदा केवल एक।
शेष सभी जुगनू बसे,टर्राते नित भेक।।
टर्राते नित भेक, देश तालाब हमारा।
मगरमच्छ का भोज,बना है मनुज बिचारा।।
'शुभम' चाटते शेर,धरा से सूखी भू रज।
नभ में रहा बिखेर, उजाला काला सूरज।।
-2-
शेखी स्वयं बघारना ,सीखें मुझसे लोग।
मैं ही तो भगवान हूँ, सबको करूँ निरोग।।
सबको करूँ निरोग, बजाओ घण्टे, थाली।
अर्थ न रखना पास, करूँगा पूरा खाली।।
'शुभम' विदेशी चाल, नहीं मेरी क्या देखी?
मैं ही प्रभु श्रीराम, सही है मेरी शेखी।।
-3-
पीकर आया सोमरस,पावन अमृत सार।
अमर देह मेरी सदा,घट-घट का आधार।।
घट- घट का आधार ,सदा ही मुझको रहना।
ज्यों गंगा की धार, धरा पर वैसे बहना।।
'शुभम' ईश-अवतार,पिलाता अमृत-सीकर।
धरती का भगवान चला हूँ, अमृत पीकर।।
-4-
बाँट रहे थे बुद्धि जब,चित्रगुप्त जिस द्वार।
सबसे आगे मैं खड़ा,पाने प्रथम कतार।।
पाने प्रथम कतार,बड़ी झोली फैला दी।
भर ली ठूँसम - ठूँस,पैर से सिर तक छा दी।।
'शुभम' बना अवतार,वे रहे अन्य को डाँट।
हुआ धन्य मम भाग,जब रहे बुद्धि वे बाँट।।
-5-
बाहर से कुछ और हूँ, अंदर से कुछ और।
बदरी फल-सा मैं मधुर,करें नयन से गौर।।
करें नयन से गौर, रूप मेरे बहुतेरे।
चमगादड़ - से नैन, सिखाए लाखों चेरे।।
'शुभम' कहूँ जो बात,वही दुहराते नाहर।
बनी हुई ये लीक,चले मत जाना बाहर।।
💐 शभमस्तु !
09.01.2021◆1.25पतनम मार्त्तण्डस्य।
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