शनिवार, 30 जनवरी 2021

किसान आंदोलन के नाम ! [ अतुकान्तिका]

 

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✍️ शब्दकार ©

🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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लाल किले पर 

तलवारें भांजने वालो! 

अपनी आँखों के

पानी को सँभालो,

एक ही झंडा है,

वह मात्र तिरंगा है,

वही एक यमुना है

वही एक गंगा है,

अपनी माँ से ही

क्यों ले रहे हो

पंगा ये?


पड़ जायेगा

बहुत ही भारी,

बने रहो 

देश की पुलिस के

आभारी ,

नहीं तो घरों में बैठकर 

रोतीं बिलखती तुम्हारी

पत्नी ,बहन ,महतारी,

मनाओ अपनी जान की खैर,

मत करो इस 

अन्नदायिनी धरती से बैर,

बन रहे हो 

केले के बाग में

कँटीले बेर,

अभी भी नहीं हुई है देर,

जगाओ अपनी सद्बुद्धि,

आतंकियों के साथ

मत बनो दुर्बुद्धि !

अभी भी समय है

कर लो अपनी

आत्मा की शुद्धि।


भाड़े के भांडों से

कब तक गवाओगे!

मुफ़्त के काजू बादाम

कब तक उड़ाओगे,

तिरंगे को अपावन 

तुमने जो किया है! 

शहीद भगत सिंह का 

जज़्बा भी क्या 

 तुमने जिया है?

गंगा ,यमुना, सिंधु,

पंज आब को 

मैला तुमने ही किया है।

भोले किसानों को

मोहरा बनाकर,

उनके कंधे पर

 ट्रैक्टरों का ज़खीरा

 तुमने ही चलाया है,

अपने पैरों में

 मारकर कुल्हाड़ी

अन्नदाता के प्रति

किया तुमने छलावा है! 


देशद्रोही हो तुम

तुम्हें धिक्कार है !

हजारों हज़ार बार

धिक्कार है ! धिक्कार है!!

देश की अस्मिता ,

गरिमा , गौरव को

दागी किया है,

आतंकियों की

 गोद में बैठ 

कायरता, क्लीवता, कापुरुषता का नंगा

नर्तन किया है! 

आ गई बाहर 

तुम्हारी नंगी औक़ात,

हिंसा से

 किसने जीती है बिसात?

'जिओ और जीने दो '

- का पावन संदेश,

क्या भूल गए?

याद करो उनको

जो मातृभूमि की

खातिर फंदे पर झूल गए।


अक्षम्य अपराध की

कोई भी छूट नहीं है,

जो करेगा न्याय का दंड

तुम्हारे लिए वही सही है!

आख़िर बकरे की अम्मा

कब तक खैर मनाएगी?

नपुंसकों की मौत पर

क्यों मर्सिया गाएगी!

तुम्हें   पशु    कहना

पशुजाति   का    अपमान   है!  

  और    तू   अपने    को  कहता

'शुभम'  इंसान है!

भेड़िए ओढ़कर खालें 

चले आए! 

देश के अन्नदाता को

भ्रमित कर छलते आए!

देशद्रोहियों का

जो हस्र होना है!

उनकी जाया माओं को

रोना ही रोना है!

देशद्रोही पामर है ,कीट है,

उसे बस शल्य ही होना है,

शल्यों को जलाना

हमें खूब आता है,

खूब आता है,

संविधान के पर्व को

कलंकित करने का

दंड देना,

 ये देश खूब जानता है।


🪴 शुभमस्तु !


२८.०१.२०२१◆४.००पतनम मार्त्तण्डस्य।

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