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✍️ शब्दकार ©
🦜 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मानव के कितने चरित,आदि न मध्य न अंत
मानव ही जाने नहीं,जाने साधु न संत।।
नियम बनाता आप ही,करता भी वह भंग,
जिन्हें विधायक बोलते,निज कर करता हंत
मानव-चरितों से भरी,कविता,कथा अनेक,
महाकाव्य की पोथियाँ,चरित राम, हनुमंत।
सीता, सावित्री यहाँ, कुटिल मंथरा नारि,
हर युग में मिलती सदा,पन्ना धाय सुमंत।
भरत लखन से अनुज हैं,अर्जुन से बहु शूर,
धर्मराज विरले कहीं,विज्ञ विदुर मतिवंत।
कंस और रावण बिना,राम नहीं हैं श्याम,
चमके चारु चरित्र दो,जगती में यशवंत।
साँचे बदले नित्य ही,जग का रचनाकार,
कभी सूर,तुलसी हुए,कभी 'शुभम' औ' पंत।
🪴 शुभमस्तु!
१४०१२०२१◆५.००पतनम मार्त्तण्डस्य।
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