शनिवार, 30 जनवरी 2021

होगा भोर [ अतुकान्तिका ]


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✍️ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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रास्ते

कहीं नहीं जाते ,

परंतु 

पहुँचा देते हैं

गंतव्य तक,

जहाँ भी

 जाना है हमें।


रास्ते 

मौन हैं ,

चलना तो हमें ही है,

अपने निर्दिष्ट

पथ पर

निरंतर,

बिना थके

बिना रुके 

अहर्निश।


गंतव्य

नहीं आते

स्वतः अपने पास,

होना चाहिए

मन में दृढ़ विश्वास,

मिलता है तभी

उज्ज्वल प्रकाश,

करता है मानव

निरंतर विकास।


आशा की डोर

मत छोड़ ,

मत हो मन से 

कभी कमजोर,

होगा भोर!

होगा भोर !!

नहीं कर 

व्यर्थ का शोर,

थामे रख 

मजबूती से

लक्ष्य की

 डोर का छोर।


पहचान

 अपने मन की 

अपार शक्ति,

मत रख 

बाधकों की बातों में

अनुरक्ति,

मत बैठ

नकारात्मक शक्ति के

मानुष के पास,

भर देगा 

निराशा हताशा,

वह नहीं है खास,

अपने में है

यदि दृढ़ विश्वास,

चलती रहेगी

तेरी मधुर -मधुर साँस,

आएगी तुझे

वही रास ,

बनेंगे नए - नए अनुप्रास,

दिखाई देगा 

पथ में 

उजास ही उजास,

 'शुभम सफलता का 

 उजास! 


विस्मृत हो जाएगा

निराशावादी शब्द 'काश',

वहीं के वहीं होंगे

रास्ते तेरे मौन,

नज़र नहीं 

मिलाएगी दुनिया,

नहीं कहेगी 

तू कौन ! 

कौन कहता है

सूरज से 

कि तू कौन है,

चल रहा अहर्निश

किन्तु वह नित 

मौन है।


🪴 शभमस्तु !


07.01.2021◆7.30पतनम मार्त्तण्डस्य।

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