शनिवार, 2 जनवरी 2021

सजल पौष की शीत [ दोहा ]

  

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप *शुभम'

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सजल पौष की शीत में,बरसे नभ से  ओस।

दृष्टि जहाँ तक जा सके,दीखे सौ-सौ कोस।।


कुहरे के कुहराम से,जीव जगत बेचैन।

दृष्टि न आए पास भी,भले खुले हों नैन।।


श्वेत धूम -सा छा गया,कुहरा पथ हर खेत।

चादर तनी प्रगाढ़ सी,मौन कीर समवेत।।


ओढ़   रजाई बैठिए,या कंबल के    संग।

दूर शीत को कीजिए, सुरा न लेना  भंग।।


अगियाने की शरण में,जाड़े का उपचार।

मूँगफली  खाते  रहें,न हो शीत  संचार।।


सरसों की भाजी बना,खाते हैं जो  लोग।

सरल शीत उपचार है,दूर उदर के  रोग।।


शकरकंद  की  खीर से, मिलता परमानंद।

गज़क कभी मत भूलिए,मिटे शीत  छलछंद।


सौंधी  रोटी  बाजरा, की खाएँ सँग   तोष।

नहीं  सताए  शीत फिर,हमें न देना  दोष।।


गर्मी  का  जब सृजन हो,दूर रहेगा   शीत।

सबकी क्षमता अलग है,सहे शीत की तीत।।


कोई    ढूँढ़े   धूप  को,   कोई  ढूँढ़े      ओट। 

सूट -  बूट   के  साथ में, धारे कोई   कोट।।


'शुभम'शीत का काल है,बचने की भी ढाल।

गरम  नीर  सेवन   करें,बदलें अपनी चाल।।


🪴 शुभमस्तु !


02.01.2021◆ 11.15 अपराह्न।


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