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✍️ शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मानव - तन से बहे पसीना।
सफल उसी मानव का जीना।
सुबह जागतीं चिड़ियाँ प्यारी
परिश्रम में जुट जातीं सारी।।
नहीं अन्न औरों से छीना।
सफल उसी मानव का जीना।
उड़-उड़ चिड़ियाँ अन्न जुटातीं।
पानी पीतीं भोजन पातीं।।
महके श्रम कण भीना -भीना।
सफल उसी मानव का जीना।
देखो बुनती बया घोंसला।
खोती मन का नहीं हौंसला।।
सीखें खग से कला, करीना।।
सफल उसी मानव का जीना।
बाग ,छतों पर मोर नाचते।
संग मोरनी , कथा बाँचते।।
कण-कण चुगते श्रम से बीना।
सफल उसी मानव का जीना।।
ब्रह्म मुहूरत बाँग लगाए।
नित्य समय से हमें जगाए।।
'शुभम'मुर्ग का स्वर मनभीना।
सफल उसी मानव का जीना।
🪴 शुभमस्तु !
११.०१.२०२१◆२.००पतनम मार्तण्डस्य।
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