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✍️ शब्दकार©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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रंगों का संसार है, भाँति -भाँति के रंग।
मज़हब में मत बाँटिए, हो मानवता भंग।।
पल्लव का रँग हरित है,पुष्प लाल सित पीत।
मानव का रँग एक ही,कर्ता की शुभ नीत।।
जितने रंगों में बँटा, मानव का संसार।
टुकड़े-टुकड़े हो गया,अलग-अलग दरबार।।
धरती के ऊपर तना, मोहक नीलाकाश।
स्वर्णिम किरणें भानु की,भू पर हरित प्रकाश
गोरी गौ माता बनी,महिषी काले वेष।
चितकबरी बकरी कहे,भैं- भैं करती मेष।।
मुर्गे की कलगी सजी,कलिका गुडहल लाल।
लाल चोंच है कीर की,हरित पंख का शाल।।
नीलकंठ दर्शन करें,शुभ दर्शन शुभ काल।
कोयल की वाणी मधुर,करती सदा कमाल।
दुग्ध धवल गोभी सजी,आलू मटर अनेक।
पालक बथुआ शाक का,घर घर में अतिरेक।
सेव,संतरा ,मौसमी, नीबू, किवी , अनार।
रंग -रंग के फल सभी,जामुन पके अपार।।
रंग -रंग का आदमी, खून सभी का लाल।
जब चढ़ता है देह में,करता नहीं बबाल।।
ऊँची-नीच बस रंग की,होता वर्ण विवर्ण।
जब अर्थी पर लेटता,भेद न अर्जुन कर्ण।।
🪴 शुभमस्तु!
२२.०२.२०२१◆५.००पतनम मार्त्तण्डस्य।
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