◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️ शब्दकार ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
लाल किला काला किया,आतंकी करतूत।
फेंक तिरंगा भूमि पर,बना स्वयं ताबूत।।
श्वान देखकर श्वान को,भौंके लाख हज़ार।
पता नहीं क्यों भौंकते,करते बंद बजार।।
समझा भेड़ किसान को,बन भेड़ों का कूप।
रेड़ मार ली आप ही,फिर लौटा घर चूप।।
भोला भ्रमित किसान ये,जान न पाया चाल।
भाँजी तलवारें वहाँ, बुलवा अपना काल।।
कंधे देख किसान के,लादीं खर तलवार।
शांतिदूत को मारते, करके पैनी धार।।
जान बचाने के लिए , कूदे सैनिक वीर।
लौट वार करते नहीं ,फिर भी वे रणधीर।।
दृश्य देख आँखें झुकीं,लाल किला प्राचीर।
हुआ दूध का दूध ही,विलग नीर का नीर।।
लगा न कृषकों का शुभं,आंदोलन उस ठौर।
आतंकी गुंडे जुटे, शर्मनाक वह दौर।।
हिंसा को न्यौता दिया,कहा बैल आ मार।
देखें शासन आज हम,बीजेपी सरकार।।
छब्बेजी बनने गए, चौबेजी जिस ठाम।
मात्र दुबे ही रह गए, तेग न आई काम।।
उलटे पैरों घर चले, फेंक तेग तलवार।
मुँह लटकाए नयन नत, काम न आई रार।।
साठ दिवस दावत उड़ीं, खा पिश्ता बादाम।
हुई हलाल न ही सुरा,डंक हुआ बदनाम।।
भाड़े की हर भीड़ ही, करती भंडाफोड़।
नेताओं की गोद में,सदा टूटते गोड़।।
घड़ियाली आँसू बहा,बिलखे नेता आज।
ऊपर से आदेश था,नाटक का आगाज़।।
बाज पराए हाथ में, करता अत्याचार।
मरवाता निज बंधु को,कैसा ये उपकार !!
🪴 शुभमस्तु!
२९.०१.२०२१◆८.१५पतनम मार्त्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें