शनिवार, 30 जनवरी 2021

किसान आंदोलन बनाम लोकतंत्र की हत्या [ कुण्डलिया ]


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                      -1-

लेकर आड़ किसान की,बदल बदलकर वेश।

लाल किला दागी किया,किया कलंकित देश।

किया  कलंकित देश,अपावन यमुना - गंगा।

फेंक दिया ध्वज धूल,शर्म से झुका तिरंगा।।

'शुभम'  कहाँ गणतंत्र, सो रहे अंडे   से  कर।

नेता ध्वंशक  क्लीव, तापते अगनी  लेकर।।


                      -2-

नेता  ही  इस  देश  के, लगा रहे  हैं  आग।

भारत माता   रो  रही,  फूट गए  हैं भाग।।

फूट  गए  हैं भाग,आड़ कृषकों   की  लेते।

स्वयं  सेंकते  हाथ ,गले  निर्धन   के   रेते।।

'शुभम' एकता  भंग, तोड़ जनगण को देता।

कायर,  कूर , कपूत,देश के नकली   नेता।।


                      -3-

नेता   नंगा   हो  गया ,  लगा देश  में  आग।

संविधान  के  दिवस को,लूटा गया  सुभाग।।

लूटा  गया   सुभाग,  पुलिस कर्तव्य निभाती।

दिया  शांति-संदेश, आन पर जान  लुटाती।।

'शुभं'पराजित क्रूर,क्लीव क्या किसको देता?

तोड़   रहे  हैं    देश, विपक्षी निर्मम    नेता।।


                      -4-

कहते हैं धिक्कार हम, हया न जिनमें  शेष।

आँखों  में  पानी  नहीं, फैलाते  जो     द्वेष।।

फैलाते   जो  द्वेष, छद्म   से हिंसा    करते।

बहका मूढ़ किसान, देश की इज्जत हरते।।

'शुभम'न शेष विधान,रक्त के दरिया   बहते।

गुंडे,कायर ,क्लीव,सभी हम इनको  कहते।।


                      -5-

दिल्ली  दिल है देश का,दीं तलवारें  भौंक।

मंचों  पर चढ़  चीखते,नेता अपनी  झोंक।।

नेता  अपनी  झोंक, तिरंगे  को फिंकवाया।

आतंकी  वे  नीच, कोख ने जिनको जाया।।

'शुभम' थूकता देश,न समझे शातिर  बिल्ली।

जना न ऐसा  शेर, झुका  जो पाए  दिल्ली।।


🪴 शुभमस्तु !


२८.०१.२०२१◆२.१५आरोहणम मार्त्तण्डस्य.

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