194/2025
[ग्रीष्म,सूरज,अंगार,अग्नि,निदाघ]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
धरती पर क्रोधित बड़े,सूरज देव सतेज।
चैत्र और वैशाख में, ग्रीष्म सनसनीखेज।।
छाँव ढूँढ़ती छाँव को, अमराई के बीच।
ग्रीष्म तपे मधुमास में,जल भी नहीं नगीच।।
सूरज देव प्रत्यक्ष हैं, जगती के भगवान।
उनसे ही सब सृष्टि है,उन-सा कौन महान।।
सूरज दाता अन्न के, पोषक जीवन - मूल।
उडुगण सोम प्रसन्न हैं,हर्षित कण- कण धूल।।
लगता है आकाश से, बरस रहे अंगार ।
रवि के प्रखर प्रकोप से,धरणि गई है हार।।
बिना उपानह पाँव भी, धरती पर बदहाल।
परस लगे अंगार-सा, बरस रहा ज्यों काल।।
पाँच तत्त्व में अग्नि का, अति महत्त्व का काम।
फसल अन्न भोजन पके, चले काम अविराम।।
जठर अग्नि आहार का ,करती पाचन पूर्ण।
दावानल बड़वाग्नि के, वन निधि में आघूर्ण।।
अग्नि बरसती शून्य से, तपने लगा निदाघ।
शेर छिपे निज माँद में, नहीं निकलते बाघ।।
जेठ और वैशाख में,जितना तप ले आग।
ये निदाघ शुभकार है, हरित बनेंगे बाग।।
एक में सब
सूरज ग्रीष्म निदाघ के, बरस रहे अंगार।
बिना लपट भी अग्नि का,प्रबल हुआ भंडार।।
शुभमस्तु!
09.04.2025● 3.45 आ० मा०
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[10:20 am, 9/4/2025] DR BHAGWAT SWAROOP:
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