204/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अगर न खिलतीं कलियाँ होतीं।
सुंदर सहज न छवियाँ होतीं।।
पर्वत सजल न ऊँचे होते,
नहीं लहरतीं नदियाँ होतीं।
सुमन बाग क्यारी में खिलते,
उड़तीं नहीं तितलियाँ होतीं।
लोग झाँकते ग्रीवा अपनी,
नहीं एक भी कमियाँ होतीं।
मीन - मेख करतीं आपस में ,
नहीं घरों में जनियाँ होतीं।
देखा होता कहीं अजूबा,
मौन धरे यदि सखियाँ होतीं।
'शुभम्' देवता बनता मानव,
नहीं विषैली दंतियाँ होतीं।
शुभमस्तु !
14.04.2025● 11.45 आ०मा०
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