शनिवार, 19 अप्रैल 2025

अगर न खिलतीं कलियाँ [गीतिका ]

 204/2025

    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अगर  न खिलतीं  कलियाँ   होतीं।

सुंदर  सहज   न   छवियाँ   होतीं।।


पर्वत    सजल    न   ऊँचे     होते,

नहीं      लहरतीं     नदियाँ   होतीं।


सुमन  बाग   क्यारी   में    खिलते,

उड़तीं  नहीं   तितलियाँ     होतीं।


लोग  झाँकते      ग्रीवा     अपनी,

नहीं   एक    भी   कमियाँ   होतीं।


मीन -  मेख    करतीं   आपस   में ,

नहीं  घरों    में     जनियाँ    होतीं।


देखा      होता      कहीं     अजूबा,

मौन  धरे  यदि    सखियाँ   होतीं।


'शुभम्'   देवता    बनता    मानव,

नहीं     विषैली     दंतियाँ   होतीं।


शुभमस्तु !


14.04.2025● 11.45 आ०मा०

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