211/2025
[अर्चन,कीर्तन,स्मरण,श्रवण,वंदन]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
प्रथम पूज्य गणनाथ का,अर्चन करके आज।
श्रीगणेश कविता करूँ,भाव शब्द के साज।।
सरस्वती वरदायिनी, अर्चन करके नित्य।
भाव सुमन अर्पित करूँ,सहित शब्द औचित्य।।
करे कीर्तन इष्ट का, भावों में हो लीन।
राम -राम रसना रटे, ज्यों तैरे जल मीन।।
नहीं कीर्तन जो करे, जपे न हरि का नाम।
अंत समय में जीभ ये,बिसराए प्रभु राम।।
करे सु- स्मरण ईश का, जब हो मन बेचैन।
विस्मृत करे न लेश भी,प्रभु जी को दिन-रैन।।
बार -बार जप राम को,स्मरण को मत भूल।
संकट मिट जाएँ सभी, उगें न शूल बबूल।।
करे श्रवण प्रभु नाम ही,करे नाम उद्गार।
रहे न मन में एक भी, दूषित मनोविकार।।
गुरुजन की आलोचना, सुनना ही है पाप।
श्रवण नहीं बिल साँप के,जिन्हें न व्यापे ताप।।
मात - पिता गुरुदेव हैं, ईश वही भगवान।
नित उनका वंदन करे, मानव वही महान।।
इष्ट वही सबसे बड़े, जननी-जनक महान।
नित वंदन उनका करूँ,उनका तना वितान।।
एक में सब
अर्चन वंदन श्रवण भी,मात- पिता का श्रेष्ठ।
स्मरण सह कीर्तन करें,वही जगत में ज्येष्ठ।।
शुभमस्तु !
20.04.2025● 9.15आ०मा०
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