191/2025
समांत : इला
पदांत : अपदांत
मात्राभार : 14.
मात्रा पतन : शून्य
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मनुज- देह दृढ़ एक किला।
बड़े भाग्य से तुम्हें मिला।।
नौ दरवाजे सभी खुले।
एक फूल जो नहीं खिला।।
आए- जाए श्वास युगल ।
होता प्रतिक्षण नहीं गिला।।
उर की धड़कन है जीवन।
धड़-धड़ पल-पल रहा हिला।।
जाग्रत रसना रुके नहीं ।
नहीं जीभ का भार झिला।।
आम पिलपिला हुआ कभी ।
वही शाख से सदा रिला।।
'शुभम्' नहीं खो नर जीवन।
मनुज-योनि है एक *तिला ।।
*तिला= स्वर्ण।
शुभमस्तु !
07.04.2025●2.45आ०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें