मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

मनुज देह दृढ़ एक किला [सजल]

 191/2025

 

समांत        : इला

पदांत         : अपदांत

मात्राभार     : 14.

मात्रा पतन   : शून्य


© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


 मनुज-  देह    दृढ़    एक   किला।

बड़े  भाग्य     से    तुम्हें      मिला।।


 नौ      दरवाजे       सभी     खुले।

एक      फूल    जो नहीं    खिला।।


आए- जाए       श्वास        युगल ।

होता     प्रतिक्षण   नहीं      गिला।।


 उर    की    धड़कन   है    जीवन।

धड़-धड़  पल-पल   रहा    हिला।।


जाग्रत      रसना      रुके      नहीं ।

नहीं   जीभ  का    भार     झिला।।


आम    पिलपिला     हुआ   कभी ।

वही    शाख  से    सदा      रिला।।


'शुभम्'  नहीं     खो    नर    जीवन।

मनुज-योनि      है   एक   *तिला ।।


*तिला= स्वर्ण।


शुभमस्तु !


07.04.2025●2.45आ०मा०

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