219/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मानव तन में हैं जो गाली।
उन्हें सोहती केवल नाली।।
रंग हिना का हुआ न हलका,
मिटी माँग अधरों की लाली।
पहलगाम की काँपी वादी,
थर - थर काँपी डाली - डाली।
बुझा दिए जिनके कुल दीपक,
बजे न घर में शैशव - ताली।
तम से भरे हृदय थे काले,
दृष्टि हुई आँखों की काली।
नहीं खिलेंगे होली के रँग,
नहीं जलाए दीप दिवाली।
'शुभम्' म्लेच्छ की रक्त पिपासा,
भरी उठाती व्यंजन - थाली।
शुभमस्तु !
28.04.2025●2.00 आ०मा०
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