202/2025
[आँख,नाक,कान,जीभ,त्वचा]
सब में एक
मिली आँख से आँख तो,खुले हृदय के द्वार।
ताप बढ़ा है देह में, उठा उदधि में ज्वार।।
खोले दोनों आँख को,चले पथिक जो राह।
सावधान होकर बढ़े, करे लक्ष्य अवगाह।।
आना -जाना श्वास का,करती है हर नाक।
प्राण वायु संचार का,रुके न पल को चाक।।
कटे नाक बचते नहीं, स्वाभिमान सम्मान।
बचा रखें हर मूल्य पर, जगत करे गुणगान।।
ध्वनिग्राही दो यंत्र हैं,उभर रहे दो कान।
मधुर-कटुक ध्वनियाँ सभी,सुनते करें निदान।।
शुभ रचना दो कान की,चले न उनसे काम।
ध्यान रहे एकाग्र तो,श्रवण बने अभिराम।।
बिना अस्थि की जीभ ये,सरस्वती का वास।
विष -अमृत इसमें सदा,करते तमस-उजास।।
जीभ स्वर्ग की गैल है,विष की भी वह बेल।
उसको सदा सँभालिए,करे अन्यथा जेल।।
त्वचा इंद्रियों में सभी,व्यापक वृहदाकार।
रक्षक है नर देह की,रखती बड़ा प्रभार।।
गोरे-काले रंग दो, त्वचा देह का वस्त्र।
कोमल मानो फूल हो,बचा अस्त्र या शस्त्र।।
एक में सब
त्वचा जीभ दो आँख हैं,इन्द्रिय पंच महान।
नाक कान मत भूलिए,इनसे सकल जहान।।
शुभमस्तु !
13.04.2025●5.00प०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें