शनिवार, 19 अप्रैल 2025

सुमन बाग क्यारी में खिलते [सजल ]

 203/2025

    

समांत        :इयाँ

पदांत         : होतीं

मात्राभार     : 16

मात्रा पतन   : शून्य।


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अगर  न खिलतीं  कलियाँ   होतीं।

सुंदर  सहज   न   छवियाँ   होतीं।।


पर्वत    सजल    न   ऊँचे     होते।

नहीं      लहरतीं     नदियाँ   होतीं।।


सुमन  बाग   क्यारी   में    खिलते ।

उड़तीं  नहीं   तितलियाँ     होतीं।।


लोग  झाँकते      ग्रीवा     अपनी।

नहीं   एक    भी   कमियाँ   होतीं।।


मीन -  मेख    करतीं   आपस   में ।

नहीं  घरों    में     जनियाँ    होतीं।।


देखा      होता      कहीं     अजूबा।

मौन  धरे  यदि    सखियाँ   होतीं।।


'शुभम्'   देवता    बनता    मानव।

नहीं     विषैली     दंतियाँ   होतीं।।


शुभमस्तु !


14.04.2025● 11.45 आ०मा०

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