203/2025
समांत :इयाँ
पदांत : होतीं
मात्राभार : 16
मात्रा पतन : शून्य।
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अगर न खिलतीं कलियाँ होतीं।
सुंदर सहज न छवियाँ होतीं।।
पर्वत सजल न ऊँचे होते।
नहीं लहरतीं नदियाँ होतीं।।
सुमन बाग क्यारी में खिलते ।
उड़तीं नहीं तितलियाँ होतीं।।
लोग झाँकते ग्रीवा अपनी।
नहीं एक भी कमियाँ होतीं।।
मीन - मेख करतीं आपस में ।
नहीं घरों में जनियाँ होतीं।।
देखा होता कहीं अजूबा।
मौन धरे यदि सखियाँ होतीं।।
'शुभम्' देवता बनता मानव।
नहीं विषैली दंतियाँ होतीं।।
शुभमस्तु !
14.04.2025● 11.45 आ०मा०
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