192/2025
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मनुज- देह दृढ़ एक किला।
बड़े भाग्य से तुम्हें मिला।।
नौ दरवाजे सभी खुले,
एक फूल जो नहीं खिला।
आए- जाए श्वास युगल,
होता प्रतिक्षण नहीं गिला।
उर की धड़कन है जीवन,
धड़-धड़ पल-पल रहा हिला।
जाग्रत रसना रुके नहीं ,
नहीं जीभ का भार झिला।
आम पिलपिला हुआ कभी,
वही शाख से सदा रिला।
'शुभम्' नहीं खो नर जीवन,
मनुज-योनि है एक *तिला ।
*तिला= स्वर्ण।
शुभमस्तु !
07.04.2025●2.45आ०मा०
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