मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

नौ दरवाजे सभी खुले [गीतिका]

 192/2025

         


© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


 मनुज-  देह    दृढ़    एक   किला।

बड़े  भाग्य     से    तुम्हें      मिला।।


 नौ      दरवाजे       सभी     खुले,

एक      फूल    जो नहीं    खिला।


आए- जाए       श्वास        युगल,

होता     प्रतिक्षण   नहीं      गिला।


 उर    की    धड़कन   है    जीवन,

धड़-धड़  पल-पल   रहा    हिला।


जाग्रत      रसना      रुके      नहीं ,

नहीं   जीभ  का    भार     झिला।


आम    पिलपिला     हुआ   कभी,

वही    शाख  से    सदा      रिला।


'शुभम्'  नहीं     खो   नर    जीवन,

मनुज-योनि      है   एक   *तिला ।


*तिला= स्वर्ण।


शुभमस्तु !


07.04.2025●2.45आ०मा०

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