बुधवार, 2 अप्रैल 2025

कृपा तुम्हारी रहे अपार [गीत]

 186/2025

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


दुर्गा दुर्गतिनाशिनी 

कृपा तुम्हारी रहे अपार।


शुम्भ निशुम्भ क्रूर महिषासुर

करते अत्याचार यहाँ

रक्षा करें मातु जग जननी

अघ ओघों से मुक्त जहाँ

अष्टभुजा वाहिनी उबारो

करें जगत उद्धार।


पर्वत पुत्री ब्रह्मचारिणी

 तुम ही गौरी सिद्धिप्रदा

शंभु प्रिया तुम ही रक्षक हो

चंद्रघंटिका तुम शुभदा

रमा सरस्वती कल्याणी

करती नित उपकार।


वासंतिक नवराते आए

होती परित: जय जयकार

तुम ही काली मातु भवानी

सभी दिशाएँ करें पुकार

जय माँ दुर्गे शेरा वाली

मिटें दानवी अत्याचार।


शुभमस्तु !


01.04.2025●4.30आ०मा० 

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