गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

ये बदलाव [अतुकांतिका ]

 200/2025

                  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


झंडे गाड़ रहे हैं

यहाँ - वहाँ

तिकड़मबाज सभी

सुपथ चलने वालों को

झंझावात हैं

झकोरे हैं।


सत्य का मूल्य नहीं

सर्पों का अनुष्ठान है,

काटे जा रहे सीधे-सीधे

टेढ़े ही महान हैं।


तिकड़मी सभी बुद्धिमान

सीधे  खरे बैल हैं,

पत्नियाँ पतन ग्रस्त

दिलों में रखैल हैं।


बदल गया है जमाना

बच्चे बाप के भी बाप,

कहते हैं  उन्हें यार - यार 

पिताओं को लगा अभिशाप।


कल्पनातीत है ये बात

वक्त कहाँ ले जाएगा,

आदमी और ढोरों की

सभ्यता एक

क्यों है?कोई बताएगा?


शुभमस्तु !


10.04.2025●5.30प०मा०

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