206/2025
[पंछी,चिरैया,गौरैया,पोखर,ताल]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
मन के पंछी को नहीं, कभी एक पल चैन।
होता वह किंचित कभी, शांत नहीं दिन-रैन।।
भीषण उग्र निदाघ है, व्याकुल पंछी ढोर।
व्यथित सभी नर-नारियाँ,दिवस रात या भोर।।
उड़े चिरैया बाग में, डाल-डाल पर नित्य।
दाना - पानी ढूँढ़ती, उधर उग्र आदित्य।।
फुदक-फुदक घर में करे, एक चिरैया नेक।
कभी रसोई में मिले, कभी छतों की टेक।।
मानव की करतूत से, गौरैया के प्राण।
संकट में अब चाहिए, उसे हमारा त्राण।।
गौरैया खग फाख्ता, मोर घरों की शान।
हनन नहीं इनका करें, त्राण करें दे मान।।
पोखर में पानी नहीं, नदी रहीं सब सूख।
जीव -जंतु व्याकुल सभी,सता रही है भूख।।
पोखर प्यासी नीर से, पड़ने लगीं दरार।
सूरज आँख तरेरते, विदा वसंत बहार।।
ताल तलैया पोखरे, सरवर बड़े उदास।
तप्त विषम वैशाख में,नहीं अंबु की आस।।
ताल नहीं अब शेष हैं,मानव की करतूत।
भवन बना रहने लगे, शेष न एक सबूत।।
एक में सब
गौरैया पंछी दुखी, दुखी चिरैया मीन।
सूखे पोखर ताल भी,नर-नारी दुख लीन।।
शुभमस्तु !
16.04.2025●6.45 आ०मा०
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