214/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
रोग एक ही सबको हो तो
कौन करे उपचार।
आम खास कोई भी ऐसा
जिसे नहीं हो रोग
पड़े मौन सब खाज खुजाते
काम न आए योग
मान रहे हैं खुशी-खुशी सब
ईजादक -आभार।
सबको ज्ञान बाँटता शिक्षक
स्वयं न लेता सीख
उपचारक क्या करे बिचारा
चूस रहा वह ईख
संविधान की धाराओं से
रोगिल जन लाचार।
सबने हाथ खिलौना थामा
और न सूझे काम
अतिथि द्वार से प्यासा लौटे
मौन पड़े हैं धाम
'शुभम्' छूत ही ऐसी मीठी
समझ रहा उपहार।
शुभमस्तु !
23.04.2025●3.30प०मा०
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