सोमवार, 28 अप्रैल 2025

तेवर सूरज धूप के [ दोहा ]



212/2025

           

       [सूरज,धूप,वैशाख,तेवर,ताव]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                 सब में एक

हैं   प्रत्यक्ष   रवि  देवता, सूरज जिनका  नाम।

जीवन  दें  इस  सृष्टि को,वही श्याम वह  राम।।

सूरज   की   नव रश्मियाँ,करतीं तेज  प्रकाश।

तमस   तनिक   रहता नहीं,होता पल में   नाश।।


धूप खिली चिड़ियाँ  जगीं, पिहू- पिहू कर मोर।

उड़ते   हैं    वन - बाग   में,हुआ सुनहरी   भोर।।

बिना धूप  जीवन  नहीं, पकें फसल  चहुँ  ओर।

शीतकाल  में  जीव- जन, तरसें कब   हो  भोर।।


मधुऋतु  है वैशाख में, मस्त तितलियाँ  कुंज।

सुमन सजे वन-बाग में,भ्रमर करें नित   गुंज।।

मौसम    मधुर   सुहावना,  आए  हैं ऋतुराज।

चैत्र और  वैशाख  की, महिमा का शुभ साज।।


तेवर   तीखे    तप्त  हैं, सूरज के चहुँ   ओर।

पादप पीले  पतित  हैं,  पतझड़  के सँग भोर।।

तेवर   देखे   नैन  के, समझ गया मैं   भाव।

मन   में रहा न लेश भी,भावन भावित  चाव।।


लगा   जलाने सृष्टि को,आव न देखा  ताव।

सूरज  तप्त  निदाघ  का, करे देह पर   घाव।।

तीखे    तेरे   ताव  की,   तपन  तरेरे  आँख।

मेरे  मन   के   कीर   के,उड़ें  रँगीले   पाँख।।


                एक में सब

तेवर   सूरज   धूप के  ,दिखलाते   हैं  ताव।

चैत्र   मधुर वैशाख   में,   तरे सुहानी   नाव।।


शुभमस्तु !


23.04.2025● 6.30आ०मा०

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[7:59 am, 25/4/2025] DR  BHAGWAT SWAROOP: 

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