213/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जब से पुस्तक - प्रेम के, गए बीत युग मीत।
मोबाइल से लोग ये, चलें चाल विपरीत।।
सभी समय की मित्र हैं,पुस्तक देतीं ज्ञान।
ज्ञानी जन संसार में, पाते हैं सुख मान।।
गीता रामायण नहीं,पुस्तक जीवन गीत।
दिखलातीं नित राह वे,सभी समय की मीत।।
जाना नहीं महत्त्व जो, पुस्तक का भुव लोक।
राह न मिलती ज्ञान की,मिले रोक ही रोक।।
पुस्तक को सम्मान दें,तुम्हें मिलेगा मान।
मस्तक से अपने लगा,बनता मनुज महान।।
पुस्तक को मत लाँघिये, उठा एक भी टाँग।
हर कृति है माँ शारदा, धरें शीश शुभ माँग।।
मंदिर में ज्यों देवियाँ, दुर्गा रूप महान।
त्यों घर में देवी वही, पुस्तक ज्ञान प्रमान।।
पुस्तक से पंडित बने,धारण कर निज शीश।
जीवन मित्र सँवार ले, पुजे भक्त ज्यों ईश।।
अवमूल्यन है ज्ञान का, पुस्तक का अपमान।
ज्ञान डिजीटल हो गया, मूँछ रहा है तान।।
पढ़ - पढ़ पुस्तक ज्ञान की,विदुषी या विद्वान।
नाम प्रकाशित कर रहे,कहता जगत महान।।
उर से सदा लगाइए, पढ़ पुस्तक धर ध्यान।
चमकेगा नर भानु - सा, मिले जगत में मान।।
शुभमस्तु !
23.04.2025●10.15आ०मा०
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