सोमवार, 28 अप्रैल 2025

म्लेच्छ की रक्त-पिपासा [सजल ]

 218/2025


समांत        :आली

पदांत         :अपदांत

मात्राभार     :16

मात्रा पतन   :शून्य।


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मानव   तन   में   हैं  जो   गाली।

उन्हें   सोहती     केवल   नाली।।


रंग  हिना का   हुआ  न  हलका।

मिटी   माँग   अधरों की  लाली।।


पहलगाम  की     काँपी    वादी।

थर - थर  काँपी   डाली - डाली।।


बुझा  दिए  जिनके  कुल दीपक।

बजे न  घर में    शैशव  -  ताली।।


तम  से  भरे    हृदय    थे  काले।

दृष्टि   हुई  आँखों    की   काली।।


नहीं   खिलेंगे     होली   के   रँग।

नहीं  जलाए    दीप     दिवाली।।


'शुभम्'  म्लेच्छ  की रक्त पिपासा।

भरी     उठाती    व्यंजन - थाली।।


शुभमस्तु !


28.04.2025●2.00 आ०मा०

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