218/2025
समांत :आली
पदांत :अपदांत
मात्राभार :16
मात्रा पतन :शून्य।
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मानव तन में हैं जो गाली।
उन्हें सोहती केवल नाली।।
रंग हिना का हुआ न हलका।
मिटी माँग अधरों की लाली।।
पहलगाम की काँपी वादी।
थर - थर काँपी डाली - डाली।।
बुझा दिए जिनके कुल दीपक।
बजे न घर में शैशव - ताली।।
तम से भरे हृदय थे काले।
दृष्टि हुई आँखों की काली।।
नहीं खिलेंगे होली के रँग।
नहीं जलाए दीप दिवाली।।
'शुभम्' म्लेच्छ की रक्त पिपासा।
भरी उठाती व्यंजन - थाली।।
शुभमस्तु !
28.04.2025●2.00 आ०मा०
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