205/2025
©शब्दकार
डॉ भगवत स्वरूप 'शुभम्'
संविधान देता है हक ये
पड़े जुबाँ पर ताला क्यों?
सबको है इतनी आजादी
कोई रोक नहीं सकता
कहना हो जो बात कहें सब
कोई टोक नहीं सकता
संविधान अधिकार दे रहा
किसी जीभ पर जाला क्यों?
मनमानी करने की कोई
नहीं किसी को आजादी
सीमा में रहना है सबको
बनें सभी जन संवादी
जनता के होठों को सिल दो
नेताओं को माला क्यों?
नहीं चलेगी तानाशाही
कोई कितना खास भले
नहीं बपौती देश किसी की
सबकी सहज सु-श्वास चले
आम आदमी पिसता निशिदिन
पड़ा अनय से पाला क्यों?
शुभमस्तु!
15.04.2025●4.30आ०मा०
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