गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

आदर [कुंडलिया]

 201/2025 

             

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

करिए  आदर  अतिथि  का, आ जाए  जो  द्वार।

अतिथि  देव  सम   पूज्य है, रहना सदा    उदार।।

रहना    सदा  उदार, भोज    पानी  सब    देना।

आया  है  किस   काज,  जान  वाणी  से   लेना।। 

'शुभम्' न विष को घोल,कष्ट उसके सब   हरिए।

दे   आदर   सत्कार,अतिथि का स्वागत   करिए।।


                         -2-

जनता    से  नेता  सभी,  चाह  रहे हैं    मान।

कदम-कदम   आदर  मिले, भले न टूटी   छान।।

भले  न  टूटी  छान,  न  जनता किंचित  भाए।

झूठे   करे   बखान,   झूठ  आश्वासन    लाए।।

'शुभम्' जोड़ता   हाथ, दिखाकर आँखें  तनता।

कड़वा  लगता   क्वाथ,चूसता  भूखी    जनता।।


                         -3-

सबका   आदर   कीजिए,  करे  नहीं  अपमान।

मात -पिता गुरुजन सभी,पूज्य अपरिमित शान।।

पूज्य   अपरिमित शान, बड़े - छोटे हों     कोई।

एक  सभी   की   चाह,  भले  चम्मच बटलोई।।

'शुभम्'  गया जब  मान, महाभारत आ  धमका।

इसीलिए   धर  ध्यान,करें हम आदर    सबका।।


                         -4-

करता आदर  अन्य  का, पाता  है वह  मान।

श्वान -पुत्र  पहचानता,  मानुष  प्रेम निधान।।

मानुष  प्रेम  निधान, पाँव को पुनि- पुनि चाटे।

भले  ऐंठ  लो  कान, नहीं कण भर भी  काटे।।

'शुभम्' प्रेम विश्वास,श्वान का कभी न मरता।

आजीवन  रह  पास, गृही का आदर करता।।


                         -5-

भूखे   आदर   के  सभी, निर्धन  और  अमीर।

स्वाभिमान सबका  बड़ा,इससे सभी   अधीर।।

इससे  सभी  अधीर, तनिक अपमान  न  झेलें।

उड़ते  सरिस  समीर,  बड़ी विपदा भी  ले लें।।

'शुभम्' न कर व्यवहार,कभी मानुष से रूखे।

खुले   मान   का   द्वार, सभी   हैं इसके भूखे।।


शुभमस्तु !


10.04.2025●8.00 प०मा०

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