शनिवार, 19 अप्रैल 2025

सबका सम अधिकार [कुंडलिया]

 210/2025

      

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

करते   हैं   उत्पात   वे,  जिनको देश  समाज।

जनहित  भी  भाता  नहीं,विकृत करते साज।।

विकृत  करते   साज, देश  की शांति  मिटाते।

गिरे  किसी  पर   गाज,   खड़े- बैठे पगुराते।।

'शुभम्'    देश   के   कोढ़, नहीं  वे रब से डरते।

बेशर्मी   ली   ओढ़, सभी को व्याकुल करते।।


                         -2-

करना  ही  उत्पात  को,जिनका लक्ष्य  प्रधान।

शांति  सौख्य  सौहार्द  के, सदा काटते कान।।

सदा    काटते   कान, नहीं   समता से    नाता।

जिन्हें मिला  वरदान, नहीं मानव मन   भाता।।

'शुभम्'  काठ   के  कीट, नींद सोते की हरना।

करें   सदा   ही  बीट, उपद्रव नित ही  करना।।


                         -3-

सबका    सम   अधिकार   है, समतावादी  देश।

ऊँचनीच  का  भेद  क्यों,यद्यपि विविध  सुवेश।।

यद्यपि   विविध  सुवेश,  करें  उत्पात   अनाड़ी।

चाहत   निजी   विकास, चले उनकी  ही  गाड़ी।।

'शुभम्' सभी को काम,मिले करुणा कर रब का।

एक   सभी   का  राम,  देश ये भारत   सबका।।


                         -4-

दानव   दल   बढ़ने  लगा, नित्य  करे उत्पात।

दाँव    लगाकर    देश   में,  पहुँचाए आघात।

पहुँचाए आघात,  हानि जन- धन की  करता।

दिवस  न   देखे   रात,   सुधारे  नहीं  सुधरता।।

'शुभम्'   देश  में  नाग,पनपते मिटता  मानव।

नहीं शांति का दूत, शत्रु जन -धन  का  दानव।।


                            -5-

बोया    बीज  बबूल   का, अमराई  के   बीच।

खिलना  फूल   सरोज का,  गाढ़ी-गाढ़ी  कीच।।

गाढ़ी-गाढ़ी    कीच,   शूल   की  बाढ़   सताए।

जन्म-जन्म   का  नीच, कहो कैसे वह   भाए??

'शुभम्' आज भी मूढ़, नहीं जागा क्यों   सोया?

होता     है    उत्पात,  शूल का बिरवा    बोया।।


शुभमस्तु!


18.04.2025 ●12.15प०मा०

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