193/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
छाया को भी छाँव चाहिए
भले पेड़ छतनार।
दूर -दूर पसरा सन्नाटा
खड़ा एक ही पेड़
बैठे पालक और बकरियाँ
एक नदी की मेड़
चैत्र मास है तेज धूप ये
लेटी पाँव पसार।
उधर झाड़ियाँ
खड़ीं मौन हैं सूखे खेत अधीर
नहीं चहकते वहाँ पखेरू
धरती तपे अचीर
फिर भी देखो अजा पाल सब
मिल जुल बाँटें प्यार।
एक अकेला पेड़ छाँव का
करके शुभकर दान
आ जाता जो शरण पेड़ की
बनता है मेहमान
भूभर में जलते हैं सबके
पाँव न जूतादार।
शुभमस्तु !
08.04.2025●6.45 आ०मा०
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