208/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सिल दिए गए हों
जनता के होंठ
जुबाँ पर ताला जड़ा,
क्या कहें इसे
सुशासन या अति-आचार बड़ा
ये कैसा गणतंत्र है?
चुसना है आम को सदा
उन्हें समूचा चूस लेना है
एक देकर दाहिने कर से
बाएँ से दस मूस लेना है
धन्य मेरे प्रजा के तंत्र!
समाज हो
देश हो व्यवस्था हो
तानाशाही अदृष्ट नहीं,
विनाश का लक्षण है ये
यहाँ कोई भ्रष्ट नहीं,
फूँक जो दिया है मंत्र!
मौन में ही चैन है
सुनना है ,कहना नहीं
वेदना को सहना है
भावों में बहना नहीं,
हो ही गया है
देश ये स्वतंत्र।
शुभमस्तु !
17.04.2025●2.30प०मा०
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