रविवार, 22 सितंबर 2019

मानव , मानव तो रहे [ दोहे ]


  ★★◆★★◆★★◆★★

लगी    आग    में   छोड़ना,
घी     की       गाढ़ी    धार।
ऐसे   ही    बहु जन    यहाँ,
बोलें    बिना     विचार।।1।

यहाँ     सदा   ही  बाल      की ,
खाल        निकालें      लोग।
कलह     बढ़ाने    का  लगा ,
जिनके    मन   में  रोग।।2।

टाँग    फटे     में    फाँसना,
जिनका   ही     नित  काम।
बुद्धि     शुद्धि    उनकी करें,
विमला        राधेश्याम ।।3।

अपने -  अपने    चौक   पर,
सब        स्वामी       सम्राट।
पर्वत     के      नीचे     लगे,
पता     ऊँट   को    ठाट।।4।

शीतल      वाणी    बोलकर ,
देनी      सुख     की    छाँव।
गरम   हवा   के    जल  रहे,
यहाँ     गाँव   के    गाँव।।5।

कड़वी     वाणी   तीर - सी ,
जाय     हृदय     के    पार।
सुनना      जैसा      चाहते,
वैसे     बोल      उचार।।6।

वाणी   से     पत्थर    फटे,
करो   न   उर     पर   वार।
कोमल      अंतर्बाह्य    जो,
उस   पर   नहीं  प्रहार।।7।

कौवा   कोयल   से    कहे,
कैसे         गाऊँ       गीत।
कर्कश  स्वर   में   बोलता,
यही     हमारी    रीत।।8।

बिच्छू ,    बिच्छू    ही   रहे,
देना   ही        है        दंश।
कृष्ण  सदा  रक्षक  'शुभम',
अशुभ   सदा  ही कंस।।9।

मानव ,    मानव   तो   रहे ,
धर कर        मानव     देह।
जहाँ    बसे    बोले 'शुभम',
हो   जन-जन  से नेह।।10।

रङ्ग     वर्ण    सब   व्यर्थ  हैं,
क्या   चमड़ी    का    मोह।
मानव  , मानव    पर    हँसे,
मानव    प्रति    विद्रोह।।11।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

www.hinddhanush.blogspot.in

22.09.2019◆5.50अपराह्न

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