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लगी आग में छोड़ना,
घी की गाढ़ी धार।
ऐसे ही बहु जन यहाँ,
बोलें बिना विचार।।1।
यहाँ सदा ही बाल की ,
खाल निकालें लोग।
कलह बढ़ाने का लगा ,
जिनके मन में रोग।।2।
टाँग फटे में फाँसना,
जिनका ही नित काम।
बुद्धि शुद्धि उनकी करें,
विमला राधेश्याम ।।3।
अपने - अपने चौक पर,
सब स्वामी सम्राट।
पर्वत के नीचे लगे,
पता ऊँट को ठाट।।4।
शीतल वाणी बोलकर ,
देनी सुख की छाँव।
गरम हवा के जल रहे,
यहाँ गाँव के गाँव।।5।
कड़वी वाणी तीर - सी ,
जाय हृदय के पार।
सुनना जैसा चाहते,
वैसे बोल उचार।।6।
वाणी से पत्थर फटे,
करो न उर पर वार।
कोमल अंतर्बाह्य जो,
उस पर नहीं प्रहार।।7।
कौवा कोयल से कहे,
कैसे गाऊँ गीत।
कर्कश स्वर में बोलता,
यही हमारी रीत।।8।
बिच्छू , बिच्छू ही रहे,
देना ही है दंश।
कृष्ण सदा रक्षक 'शुभम',
अशुभ सदा ही कंस।।9।
मानव , मानव तो रहे ,
धर कर मानव देह।
जहाँ बसे बोले 'शुभम',
हो जन-जन से नेह।।10।
रङ्ग वर्ण सब व्यर्थ हैं,
क्या चमड़ी का मोह।
मानव , मानव पर हँसे,
मानव प्रति विद्रोह।।11।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
www.hinddhanush.blogspot.in
22.09.2019◆5.50अपराह्न
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