रविवार, 8 सितंबर 2019

कौवे करते पाठ [ दोहे ]

      

औरों    की   सुनना   नहीं ,
केवल        बोलें      बोल।
अपनी    हरदम     हाँकना,
बोलें    बोल   न तोल।।1।

कड़वी      वाणी   बोलिए ,
होय      हृदय     के    पार।
कानों   के   दर   में     घुसे,
जैसे     कटु   तलवार।।2।

जीभ  -  वचन  आनन सुने ,
कान      हुए    दो     मौन।
आशा     गूँगों     से   नहीं ,
वाणी     बोले     कौन !!3।

अपनी  -  अपनी  सब कहें ,
सुनें    न    वचन  -  रसाल।
इसीलिए  तो    शोर     की ,
जलती जगत -मशाल ।।4।

जीभ -   द्वार   चौपट  खुला ,
जमी      कान     में    ठेक।
अमृत    वाणी     से     झरे ,
सुनें   न    चर्चा    नेक ।।5।

मक्का       के    दाने   भुने ,
गर्म      भाड़    के      बीच।
भड़ भड़ भड़  भड़के वचन,
कड़वाहट     से   सींच।।6।

कोयल    गए    विदेश  को,
कौवे         करते       पाठ।
महाभागवत    बाँच     कर,
अंगना - आँगन     ठाठ।।7।

ढोलक  बजती डिमक डिम ,
चिमटा     कर      करताल।
घुँघरू        रुनझुन    झूमते,
नारी  - नृत्य  -    रसाल।।8।

सुना      सुनाकर    चुटकुले,
हँसा -    हँसा      कर   नार।
पंडित  जी     हैं        झूमते ,
बरसें        नोट   अपार।।9।

बिना    नाच  क्या  भागवत ,
गौरा   -            कन्यादान।
भाँड़      इकट्ठे    कर  लिए ,
पढ़ते         महापुरान।।10।

भँडिआई     या   भागवत ,
दोनों       एक       समान।
हँसी  ठिठोली   नारि   सँग,
'शुभम ' करे कल्यान।।11।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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