औरों की सुनना नहीं ,
केवल बोलें बोल।
अपनी हरदम हाँकना,
बोलें बोल न तोल।।1।
कड़वी वाणी बोलिए ,
होय हृदय के पार।
कानों के दर में घुसे,
जैसे कटु तलवार।।2।
जीभ - वचन आनन सुने ,
कान हुए दो मौन।
आशा गूँगों से नहीं ,
वाणी बोले कौन !!3।
अपनी - अपनी सब कहें ,
सुनें न वचन - रसाल।
इसीलिए तो शोर की ,
जलती जगत -मशाल ।।4।
जीभ - द्वार चौपट खुला ,
जमी कान में ठेक।
अमृत वाणी से झरे ,
सुनें न चर्चा नेक ।।5।
मक्का के दाने भुने ,
गर्म भाड़ के बीच।
भड़ भड़ भड़ भड़के वचन,
कड़वाहट से सींच।।6।
कोयल गए विदेश को,
कौवे करते पाठ।
महाभागवत बाँच कर,
अंगना - आँगन ठाठ।।7।
ढोलक बजती डिमक डिम ,
चिमटा कर करताल।
घुँघरू रुनझुन झूमते,
नारी - नृत्य - रसाल।।8।
सुना सुनाकर चुटकुले,
हँसा - हँसा कर नार।
पंडित जी हैं झूमते ,
बरसें नोट अपार।।9।
बिना नाच क्या भागवत ,
गौरा - कन्यादान।
भाँड़ इकट्ठे कर लिए ,
पढ़ते महापुरान।।10।
भँडिआई या भागवत ,
दोनों एक समान।
हँसी ठिठोली नारि सँग,
'शुभम ' करे कल्यान।।11।
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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