मंगलवार, 10 सितंबर 2019

श्रम- सत्य सायली



  ◆◆
सागर
कितना गहरा !
किन्तु मिला करते
मुक्ता  मणि 
गहराई।

◆◆
मोती
तट पर
पाए  हैं किसने ?
गहरे पानी 
पैठ।

  ◆◆
पसीना
बहता है
श्रम सीकर बन
महक - महक 
जाता।

   ◆◆
चाहता 
नहीं श्रम
तन   मन  से
वह  युवा 
नहीं।

 ◆◆
खून
चूसता उनका
जिनमें  हड्डी  शेष
इंसान  नहीं
वह।

◆◆
मर्यादा
अपने  भी
हाथों  में होती
पहले  रक्षक 
हम।

◆◆
पिपीलिका 
चढ़ती जाती
पर्वत  की   चोटी
धीरज महान 
है।

    ◆◆
गाल
बजाना सहज
करके दिखलाना नहीं
कौन  सोचेगा
इतना।

    ◆◆
झूठ
सीखना पड़ता
करके   कोशिश  भारी
सायास  बना 
झूठ।

  ◆◆
सत्य 
सरित  धारा
बहती  है स्वतः
अविरल अनायास
अविराम।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम '

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