1.शैलपुत्री
माँ देवी के रूप में,
कृपा करो माँ आप।
सुख -समृद्धि - वर्षा करो,
हरो दुःख संताप।।1।
शैलराज हिमवंत के,
घर में धर अवतार।
शैल - सुता शीतल करो,
पाप - ताप संसार।।2।
पार्वती वृषवाहिनी ,
बसो भक्त - उर -धाम।
कृपावृष्टि अविरत करो,
दया मातु अभिराम।।3।
2.ब्रह्मचारिणी
तप आचरिता रूप तव,
ब्रह्मचारिणी मात।
तप , संयम , वैराग्य की,
दें माता सौगात।।4।
सदाचार औ' त्याग की,
दाएँ कर जप - माल।
एक कमण्डल वाम कर,
दिव्य ज्योति तव भाल।।5।
सर्व सिद्धि की दायिनी,
नाम अपर्णा एक।
मन विचलित करना नहीं,
जब हों विपति अनेक।।6।
3.चंद्रघंटा
शोभित देवी - शीश पर,
घण्टाकृति अध- चाँद।
स्वर्ण वर्ण, दस हाथ तव,
घन - घन भीषण नाद।।7।
सिंहवाहिनी देवि तुम,
करो अशुभ से त्राण।
वस्तु अलौकिक दायिनी,
सदा 'शुभम' कल्याण।।8।
सद्गति - दायिनि शांति की,
देतीं शुभ वरदान।
ध्वनि नव दिव्य सुगंधियाँ,
साधक को हों भान।।9।
4.कूष्मांडा
माँ की मृदु मुस्कान से ,
जन्मा यह ब्रह्माण्ड।
आदि शक्ति नव सृष्टि की,
कहलाई कूष्माण्ड।।10।
जब फैला था सृष्टि में ,
तम परित: घनघोर।.
कूष्मांडा ने सृजन का ,
किया प्रकशित भोर।।11।
अष्ट भुजा की स्वामिनी,
गहे कमल का फ़ूल।
चक्र , बाण ,धनु औ' गदा,
अमृत - कलश अनुकूल।।12।
अष्ट सिद्धियाँ दायिनी ,
निधियों की जप - माल।
एक कमण्डल हाथ में,
देवी सदा कृपाल।।13।
सूर्य - लोक की वासिनी,
प्रभा सूर्य की भाँति।
आलोकित हैं दस दिशा,
दिनकर जैसी कांति।।14।
अखिल चराचर में बसा,
माँ का तेज प्रताप।
आयु और यश बल बढ़े,
नित्य करें शुभ जाप।।15।
आधि - व्याधि से मुक्त कर,
देतीं सुख - साम्राज्य।
सुख समृद्धि की दायिनी,
जीवन का शुभ आज्य।।16।
5.स्कंदमाता
चतुर्भुजाएं सोहतीं,
माता पंचम रूप।
अंक लिए स्कंद सुत,
ऐसा दिव्य स्वरूप।।17।
वरमुद्रा धारण किए,
ऊर्ध्व भुजा जो वाम।
अधो भुजा थामे हुए,
युगल कमल अभिराम।।18।
शुभ्र वर्ण पद्मासना,
सिंहवाहिनी मात
सर्वकामना पूर्ण कर,
देतीं मोक्ष - प्रभात।।19।
6.कात्यायनी
देवि पराम्बा भगवती-
के तप का परिणाम।
सुता रूप जन्मी वहाँ,
कात्यायन के धाम।।20।
सिंहवाहिनी देवि माँ,
कात्यायिनि हैं आप।
चतुर्भुजी भय नष्ट कर,
रोग शोक संताप।।21।
चार फ़लों की कामना,
कर जो करते भक्ति।
वर मुद्रा और अभय कर-
से देती माँ शक्ति।।22।
ब्रज की अध्यक्षा तुम्हीं,
देतीं सुफ़ल अमोघ।
जो करते आराधना,
मिटते हैं अघ - ओघ ।।23।
7.कालरात्रि
देह अँधेरे की तरह-
काली , बिखरे बाल।
विद्युतवत माला गले,
रूप बड़ा विकराल।।24।।
साँसों में ज्वाला जले,
तीन नयन हैं श्याम।
गर्दभ पर आसीन माँ,
कालरात्रि अभिराम।।25।
शुभंकरी कहते उन्हें,
भागें दानव भूत।
गृह - बाधाएँ दूर कर ,
करतीं कृपा अकूत।।26।
8.महागौरी
नित अमोघ फ़लदायिनी,
गौरी शक्ति - स्वरूप।
कुंद - पुष्प सम रूप रङ्ग,
वसनाभूषण यूप।।27।
वृषारूढ़ गौरी महा ,
सबल भुजाएँ चार।
संचित कल्मष दूर कर,
करें कृपा - संचार।।28।
एक हाथ डमरू लिए ,
एक अभय का दान।
इक त्रिशूल धारण किए,
और एक वरदान।।29।
सिद्धि अलौकिक दें सभी,
ऐसी माँ की शक्ति।
गौरी माँ के चरण में,
लगे 'शुभम' अनुरक्ति।।30।
9.सिद्धिदात्री
दुर्गा का नव रूप यह,
सिद्धिदायिका नाम।
अष्ट सिद्धि नव निधि मिले,
जो भी भक्त सकाम।।31।
पाकर देवी की कृपा ,
शिव का बदला रूप।
आधे नारीश्वर बने,
पा लीं सिद्धि अनूप।।32।
कमलासन पर सोहतीं,
रहतीं सिंह सवार।
चक्र , गदा और शंख सँग,
पुष्प कमल भी धार।।33।
माँ दुर्गे तव शरण में ,
आया तेरे द्वार।
कृपा - करों से वृष्टि कर,
माँ कर मम उद्धार।।34।
ध्यान धरूँ सुमिरन करूँ,
चरण नवाऊँ शीश।
सद विवेक धारण करूँ,
शिवम 'शुभम 'आशीष।।35।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🙏 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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