कितनी ब्रजरज पावनी,
जो परसे वह धन्य।
हुआ अवतरण श्याम का,
कारागार अनन्य।।
कारागार अनन्य,
धन्य हैं जसुमति मैया।
आए आधी रात,
सेज पर कृष्ण कन्हैया।।
'शुभम' अंक में लेत,
मातु हरषाई इतनी।
नंद हुए सानंद,
पावनी ब्रजरज कितनी।।1।
कान्हा की वंशी बजी,
गोपी भाव - विभोर।
काम - धाम निज त्यागकर,
धाईं वन की ओर।।
धाईं वन की ओर,
प्रतीक्षारत वनमाली।
दृष्टि पड़ी जब एक,
झूमती मन की डाली।।
'शुभम' नृत्य में लीन,
सखा - गोपी सुख माना।
वंशी बजती रास,
रचाते राधा -कान्हा।।2।
पानी को पनघट गई,
सुनी मुरलिया - टेर।
छोड़े रस्सी - डोल सब ,
तनिक नहीं की देर।।
तनिक नहीं की देर,
त्याग घर चूल्हा -चौका।
कृष्ण - दरस की प्यास,
न जाए सुंदर मौका।।
पीली चूनर ओढ़,
किसी ने पहनी धानी।
चिपकी साड़ी देह,
बरसता झर-झर पानी।।3।
लीलाएँ नित कर रहे,
कृष्ण कन्हैया श्याम।
खल - दानव संहार में,
रहते आठों याम।।
रहते आठों याम ,
व्यस्त कब क्या कर देते!
हटते काले मेघ,
वेदना हर हर लेते।।
शकटासुर संहार,
पूतना अशुभ बलाएँ।
'शुभम' खेल के हास,
कर रहे नित लीलाएँ।।4।
लीला कोई जानता,
नहीं तुम्हारी श्याम।
आठ -आठ तव रानियाँ,
राधा वाम ललाम।।
राधा वाम ललाम ,
षोडशी बहुत और भी।
कैसे - करते नेह ,
किया है कभी गौर भी??
नटवर नंद - किशोर ,
देव तव अम्बर पीला।
'शुभम' सदा हो लीन,
कर रहे पल -पल लीला।।5।
शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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