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-दोहा -
जीवित माँ भूखी रहे,
मरी देह को खीर।
मालपुआ मीठे बहुत,
मानव की तकदीर??1।
जीवित बाप न पूजते ,
श्रद्धा मृतक अपार।
काग खाय पहुँचे वहाँ,
डाक - पक्ष के द्वार।।2।
दुनिया ऐसी बाबरी ,
पूजे कागा श्वान।
मात - पिता भूखे मरें,
तनिक न घर में मान।।3।
मरे बाप की हड्डियाँ,
ले जाते परयाग।
दुनिया को दिखरावहीं,
धन्य बाप के भाग।।4।
-चौपाई -
जियत बाप भूखे मर जाहीं।
मरे बाप तब चढ़े कढ़ाही।।
कौवा खायं जिमावहिं बाँभन।
गंगा तट करि रहे दान पुन।।
श्राद्ध -पक्ष डाकहु पखवारा।
भोजन वसन जाहिं जेहि द्वारा।।
जहाँ दिवंगत आत्मा होई।
तहाँ मिलहिं जो भेजहिं सोई।।
बड़ी अजब यह डाक -प्रथाहू।
काग खाय पा जाय पिताहू।।
चील खाय तौ पावे माई।
श्राद्ध डाकविधि मनुज बनाई ।।
पुनर्जन्म में नहिं विश्वासा।
जौ होतौ नहिं करते हासा।।
आस्था भूत - प्रेत में भारी।
तेहि ते श्राद्ध करें नर -नारी।।
- दोहा -
वर्तमान को भूलि सब,
रखें भूत पर ध्यान।
जीवित कौ नहिं मान कछु,
मूरति में भगवान।।5।।
प्रतिमा और प्रतीक की,
संस्कृति बड़ी विचित्र।
कागा पिता प्रतीक है,
चील मातु को इत्र।।6।
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
⛲ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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