शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

केवल रस की बात [गीत]




केवल  रस  की बात न रस बरसाती है।
प्रेम  बिना  नीरस दुनियाँ कहलाती है।।

सावन - भादों   के मेघा भी  सूखे हैं ।
धरती- माँ   के  अधर आज भी  रूखे हैं।।
सिर्फ बादलों  से  बिजली  बतियाती है।
केवल रस की बात....

वे  सखियाँ  अब   कहाँ आम पर वे झूले।
कजरी  नहीं मल्हारें  ना  मन ही फूले।।
फ़ागुन  में होली  न  रंग अब  लाती है।
केवल रस की बात.....

 होरी  नहीं  न  अब वह  झुनिया- धनियाँ है।
पनघट, पनिहारिनें नहीं वहाँ पनियाँ है।।
नदी    प्रदूषित  होकर   भी  इतराती  है।
केवल रस की बात.....

नहीं रहे  ज्यौनार नहीं मधुरिम  गाली।
नहीं रहे जीजा  न  रही वैसी  साली।।
केवल बातें करने से  रार ठन जाती है।
केवल रस की बात.....

न घूँघट की ओट न नयनों में  पानी।
धर लिए हैं चूल्हे अलग हुईं  घर की रानी।।
खून  के  रिश्तों  में  भी  ठन  जाती  है।
केवल रस की बात....

जीना  नहीं   जिंदगी    केवल ढोना है।
 नहीं  महकते   फूल यही बस  रोना  है।।
कागज़  के हैं  फूल  बेल इठलाती  है ।
केवल रस की बात....

हरी हिना  पत्थर  पे  पिस ही  जाती है।
आज  की   नारी नहीं  समझ ये  पाती है।।
लाल हथेली  खूं  जैसी   रच  जाती है।
केवल रस की बात.....

💐 शुभमस्तु  !
✍ रचयिता ©
☘  डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'





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