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हिंदी - सी भाषा नहीं,
नहीं हिन्द - सा देश।
फाँक संतरे की विविध,
रूप रङ्ग बहु वेश।।
रूप रङ्ग बहु वेश,
विविध बोली बहु भाषा।
पर हिंदी सिरमौर ,
राष्ट्र की उज्ज्वल आशा।।
सब करते स्वीकार,
भाल की हिंदी , बिंदी।
'शुभम' सर्व उद्धार,
कर रही भाषा हिंदी।।1।
हिंदी घुट्टी में मिली ,
क्यों करता परहेज़?
क्यों सिकुड़ी हैं नाक - भौं,
अँगरेज़ी से हेज़।।
अँगरेज़ी से हेज़,
'ममी' माता को कहता ।
पिता हो गए ' डैड ',
बाँह मेमों की गहता।।
'शुभम' सभ्यता छोड़,
कर रहा चिन्दी - चिन्दी।
पढ़कर तू कन्वेंट,
उड़ाता खिल्ली हिंदी।।2।
हिंदी में ही सोचता ,
हँसता गाता रोज़।
झूठ प्रदर्शन के लिए,
बफ़र - प्रणाली भोज।।
बफ़र - प्रणाली भोज,
भैंस खाती ज्यों सानी।
खड़ा - खड़ा ही खाय ,
खड़ा ही पीता पानी।।
चंदन देता पोंछ ,
हटा दी माथा - बिंदी।
'शुभम' न गदहा बाजि,
हुआ खच्चर बिन हिंदी।।3।
हिंदी जननी प्रसविनी ,
हिंदी जीवन - सार।
पहले तुतले बोल तू,
करता है उच्चार।।
करता है उच्चार,
सौत माता बन जाती।
बोल फिरंगी बोल ,
भौंह तेरी तन जाती।।
'शुभम' स्वार्थ के हेत,
वसन की चिन्दी - चिन्दी।
नग्न कामिनी देख ,
बीच शरमाती हिंदी।।4।
हिंदी ही घरबार है ,
हिंदी ही आचार।
हिंदी ही संस्कार शुभ,
हिंदी विमल विचार।।
हिंदी विमल विचार,
सभ्यता सुंदर गहना।
जाने वही उदार ,
ध्यान से जिसने पहना।।
'शुभम' हिन्द में वास,
वही है हित- बल हिंदी।
सत्य एकता - मंत्र,
अमर भाषा है हिंदी।।5।
💐शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
🧡 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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