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एक जीभ के बड़े कमाल।
जीभ करे औ' पिटे कपाल।।
कहकर घुसी गाल के अंदर।
कड़वी भद्दी या हो सुंदर।।
बुरी बात का बुरा धमाल।
एक जीभ के बड़े कमाल।।
एक जीभ का ऐसा आलम।
लड़ते घर में बीबी - बालम।।
पर गृहस्थी का खड़ा सवाल।
एक जीभ के बड़े कमाल।।
दो जीभें हों तब क्या होगा !
युद्धक्षेत्र घर - घर में होगा।।
बाहर होगा सदा बवाल।
एक जीभ के बड़े कमाल।।
दाँतों की दीवार खड़ीं दो।
जिनके भीतर घुसी पड़ी वो।।
जब निकले तब देखो चाल !
एक जीभ के बड़े कमाल।।
पलट पलट कर चाल दिखाती।
झूठ बोलती नट - नट जाती।।
इसमें हड्डी रीढ़ न बाल।
एक जीभ के बड़े कमाल।।
कभी चिढ़ाती बल -बल खाती।
निंदा- रस में मौज मनाती।।
गीत सुनाती दे - दे ताल।
एक जीभ के बड़े कमाल।।
द्रुपद -सुता की जीभ चल गई।
रक्त - नदी कुरुक्षेत्र बन गई।।
रहती 'गर निज भीतर गाल।
एक जीभ के बड़े कमाल।।
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🦜 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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