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मन का लाड़ -दर्द जब जाना।
माँ - बापू को तब पहचाना।।
मेरे सुख की ख़ातिर जीते।
वरना वे रीते के रीते।।
उनके सुख का बना बहाना।
माँ -बापू को ....
गीले में माँ ख़ुद सोती थी।
नहीं शिक़ायत भी होती थी।।
सूखे बिस्तर मुझे सुलाना।
माँ -बापू को ....
बुरी नज़र से मुझे बचाती।
काला टीका शीश लगाती।।
बोल मनौती देव मनाना।
माँ -बापू को ....
थोड़ी अगर शिक़ायत होती।
बापू दुःखी बहुत माँ रोती।।
राई - नौंन शीश उतराना।
माँ - बापू को ....
उनके आँसू देख न पाऊँ।
चाहे जितने कष्ट उठाऊँ।।
प्रभुजी ऐसा योग्य बनाना।।
माँ -बापू को ....
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🧒🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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