रविवार, 8 सितंबर 2019

मंत्र -पुष्पांजलि : एक विश्वप्रार्थना [छन्द -दोहा]



     


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यज्ञरूप   भगवान    का ,
पूजन         करते       देव।
प्रजापती    की     यज्ञ   से,
नित्य     निरंतर    सेव।।1।

उपासना     औ'   यज्ञ    दो ,
होते        तत्सम        रूप।
प्रारंभिक   दो      धर्मविधि,
पूजन  के    शुभ    यूप।।2।

देवलोक      में         देवता ,
रहते         थे        सानन्द।
यज्ञ  -  आचरण    से  वही ,
पाते     नर    स्वच्छन्द।।3।

साधक   को   गौरव   मिले,
देवलोक         को     मान।
उपासना     औ'   यज्ञ    से,
मानव   की    पहचान ।।4।

सानुकूल   करते     सदा,
सब    कुछ     धनद    कुबेर।
वंदन    हम     उनको   करें,
इच्छापूर्ति       न     देर।।5।

पूरण        करने     कामना ,
आओ      शुभद       धनेश।
कामनार्थी      मनुज     हम,
रहें    न   इच्छा      शेष।।6।

सदा   हमारा     राज   ये ,
करे         सर्व       कल्यान।
वस्तु    सभी    उपभोग  की,
 भरा   रहे     धन - धान।।7।

लोकराज     हो    देश    में,
रहित      लोभ    आसक्ति।
उत्तमोत्तम   शुभ  राज  पर,
अधिसत्ता    की  शक्ति।।8।

क्षितिज - सींव  विस्तार  हो,
रहे        सुरक्षित        पूर्ण।
सागर  तक     फैले      धरा,
करें     शत्रु     को   चूर्ण।।9।


लोकराज    अपना      सदा,
रहे           सृष्टि        पर्यंत ।
शुभम' सुरक्षित मान धर,
सदाचार         धनवंत।।10।

💐शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
   

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