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यज्ञरूप भगवान का ,
पूजन करते देव।
प्रजापती की यज्ञ से,
नित्य निरंतर सेव।।1।
उपासना औ' यज्ञ दो ,
होते तत्सम रूप।
प्रारंभिक दो धर्मविधि,
पूजन के शुभ यूप।।2।
देवलोक में देवता ,
रहते थे सानन्द।
यज्ञ - आचरण से वही ,
पाते नर स्वच्छन्द।।3।
साधक को गौरव मिले,
देवलोक को मान।
उपासना औ' यज्ञ से,
मानव की पहचान ।।4।
सानुकूल करते सदा,
सब कुछ धनद कुबेर।
वंदन हम उनको करें,
इच्छापूर्ति न देर।।5।
पूरण करने कामना ,
आओ शुभद धनेश।
कामनार्थी मनुज हम,
रहें न इच्छा शेष।।6।
सदा हमारा राज ये ,
करे सर्व कल्यान।
वस्तु सभी उपभोग की,
भरा रहे धन - धान।।7।
लोकराज हो देश में,
रहित लोभ आसक्ति।
उत्तमोत्तम शुभ राज पर,
अधिसत्ता की शक्ति।।8।
क्षितिज - सींव विस्तार हो,
रहे सुरक्षित पूर्ण।
सागर तक फैले धरा,
करें शत्रु को चूर्ण।।9।
लोकराज अपना सदा,
रहे सृष्टि पर्यंत ।
शुभम' सुरक्षित मान धर,
सदाचार धनवंत।।10।
💐शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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