चौंकना मत कोई
जौंकीकरण से,
बच सकोगे
कहाँ तक,
इनके बलात
लातीकरण से,
तानाशाह के
तानाशाहीकरण से?
जौंक का धर्म,
प्रकृति और कर्म,
चूसना रक्त ,
शनै:-शनै:
लगाकर मुखौटे ,
रिझाकर ,
उलझाकर,
चूसना ही लक्ष्य,
अभक्ष्य या भक्ष्य,
अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष।
बज चुका है ढोल ,
जिसके मध्य मात्र पोल,
कोई मत बोल,
सचाई की तुला पर
नहीं कुछ तोल,
हो सके तो
सदा रस में
विष ही घोल।
कुछ भी नहीं तेरा
सर्वस्व उसका
जो चूसता है,
तुझे है हर रोक
जरा मत टोक,
तेरे हिस्से में
बस शोक ही शोक,
अफ़सोस!
मन मसोस!
चारों तरफ़
बस जौंक ही जौंक,
तलाश एक मौके की
टटिया है धोखे की,
प्रतीक्षा कर
आगामी जौंकीकरण की!
अभी तो
हिल रहा है
जीभ का पत्ता,
नहीं हिल सकेगा फ़िर,
होगी सर्वत्र
सिर्फ़ जौंकीकरण की
निर्मम सत्ता।
होगा तेरी
अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध,
नहीं कह सकेगा
तब छन्द कविता स्वच्छन्द!
मचल -मचल
सिर नवाकर चल ,
तुझे टाट
उधर मख़मल,
तलवे चाट,
बना लाचार,
वह होगा
जौंकीकरण का बादशाह!
तेरी तो निकलेगी भी नहीं
आह ! वाह ! ! चाह !!!
तुझे चुसना ही होगा,
चूहे की तरह
आई बिल्ली ! आई बिल्ली !!
कहकर बिल में
घुसना ही होगा।
उठ खड़ा हो !
जाग जा !
लेकर हाथों में हाथ,
तेरे अपने ही
निभाएंगे तेरा साथ,
संघर्ष कर
बलिदान होने के लिए!
भावी पीढ़ियों
अपने वर्तमान की रक्षार्थ।
नहीं है अधिक समय
सो मत
तू जाग,
छिपा बैठा है
किस मांद में
निकल भाग।
जौंकों के झुंड
निकल पड़े हैं,
आ रहा है शुभ सवेरा,
जौंकीकरण के समक्ष
क्यों सिर अपना
झुका रहा है?
आह्वान कर
ले उग्रता धारण
अपने अधिकार की रक्षार्थ,
कर्तव्य है तेरा ,
आगमित जौंकीकरण में,
नहीं कह पायेगा,
ये मेरा
ये तेरा,
होगा सभी कुछ
जौंक का,
निर्मम क़ानून की
दुनाली की नौंक का,
रह जायेगा
तू दाल में
हींग के
छोंक -सा।
💐शुभमस्तु!
✍ रचयिता ©
🍃 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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