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खटमल नेता से कहे,
एक हमारा खून।
दिल्ली मुम्बई में रहो,
या हो दहरादून।।
या हो दहरादून,
एक गुण मेरे तेरे।
हम परिजीवी जीव,
पास आते बहुतेरे।।
पलँग बिछे रंगीन,
गुदगुदी जिन पर मख़मल।
'शुभम' चूसते खून,
छिपे नेता औ' खटमल।।1।
कपड़े केवल रँग लिए,
मन न रँगा हरि नाम।
स्वाद बदलते नित्य वे,
भीतर खेले काम।।
भीतर खेले काम ,
मिला आनन्द काम का।
गैरिक रँग के साथ,
जुबाँ पर राम नाम का।।
कहते परमानंद ,
नाम के सारे लफड़े।
यौवन के सँग रास,
रँगे बाबा ने कपड़े।।2।
भेद खुला जब रङ्ग का ,
पहुँचे कारागार।
मंत्री - पद भी पा गए,
जहाँ न नीति -विचार।।
जहाँ न नीति -विचार,
बिठा दो सबके ऊपर ।
मिले 'शुभम' सम्मान,
गिरे अब औंधे भूपर।।
डूबें विशद जहाज़,
जब हो पेंदी में छेद।
करतूतें खुल जायँ,
जब खुलें वेश के भेद।।3।
निर्धन के हक के लिए,
जो लड़ते यह राज़ ।
बन जाते धनराज वे,
मढ़ते सिर पर ताज़।।
मढ़ते सिर पर ताज़ ,
रहे निर्धन ही निर्धन।
जैसे खटमल चूस,
बनाता नर का ईंधन।।
जाति - वर्ण का भेद ,
नहीं कोई भी बंधन।
'शुभम' एक ही साध,
निचोड़े कैसे निर्धन।।4।
तेरा तो कुछ भी नहीं ,
जो भोगा वह भाग।
जो गाता अब तक रहा,
भूल सभी वे राग।।
भूल सभी वे राग,
भाग जा हमें सौंपकर।
आया सबका काल,
शीश में तेग खोंपकर।।
'शुभम' खोल ले कान ,
नहीं कर मेरा - मेरा।
रोटी खा चुपचाप,
बोल मत क्या है तेरा।।5।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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