सब कहते मुझको गली-गली।
पर मैं तो अच्छी सही भली।।
मुझसे   होकर   बाहर जाते।
बाहर   से  हो   भीतर आते।।
अपनी   जगह  से मैं न टली।
सब कहते मुझको...
दरवाजों   के   सामने   पड़ी।
सबकी सेवा में  सदा  अड़ी।।
कर्तव्य  करूँ , मैं  नहीं छली।
सब कहते मुझको ....
मुझमें मत फेंको तुम कचरा।
जाओगे   तुम उससे टकरा।।
स्वच्छ रखो ज्यों फूल कली।
सब कहते मुझको....
खेलो - कूदो  टोकती  नहीं।
कोई   जाए   रोकती  नहीं।।
मैं   हूँ  भी   ऐसी ही पगली।
सब कहते मुझको....
कुत्ता   बिल्ली  या  चोर चले।
बच्चा -  बच्ची  कोई निकले।।  
.आश्रय में रहती 'शुभम'पली।
सब कहते मुझको....
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
💁♂ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
 
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